माता (दुर्गा) बोली ब्रह्मा तुझे तेरे पिता के दर्शन नहीं होंगे तब ब्रह्मा ने कहा मैं उस पुरुष (प्रभु )का पता लगाकर ही रहूंगा दुर्गा ने कहा यदि वह तुझे दर्शन नहीं देगा तो तुम क्या करोगे ब्रह्मा ने कहा कि मैं आपको शक्ल नहीं दिखाऊंगा। ब्रह्मा जी व्याकुल होकर उत्तर दिशा की तरफ चल दिए जहां अंधेरा ही अंधेरा था वहां ब्रह्मा ने चार युग तक ध्यान लगाया परंतु कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ।दूसरी तरफ जोत निरंजन ने कसम खाई है कि मैं अव्यक्त रहूंगा किसी को दर्शन नहीं दूंगा।
तब ब्रह्माजी देवी दुर्गा के पास वापिसआया दुर्गा ने उसे पूछा कि क्या तुझे तेरे पिता के दर्शन हुए? ब्रह्मा ने कहा हाँ मुझे पिता के दर्शन हुए हैं। दुर्गा ने कहा साक्षी बता। तब ब्रह्मा ने कहा इन दोनों (गायत्री, पहुपवती) के समक्ष साक्षात्कार हुआ है। देवी ने उन दोनों लड़कियों से पूछा क्या तुम्हारे सामने ब्रह्म का साक्षात्कार हुआ है तब दानों ने कहा कि हाँ, हमने अपनी आँखों से देखा है। फिर दुर्गा (प्रकृति) को संशय हुआ कि मुझे तो ब्रह्म ने कहा था कि मैं किसी को दर्शन नहीं दूंगा, परन्तु ये कहते हैं कि दर्शन हुए हैं। तब अष्टंगी ने ध्यान लगाया और /ज्योति निरंजन से पूछा कि यह क्या कहानी है? ज्योति निंरजन जी ने कहा कि ये झूठ बोल रहे हैं। तब माता ने कहा तुम झूठ बोल रहे हो। आकाशवाणी हुई हैकि इन्हें कोई दर्शन नहीं हुए यह बात सुनकर ब्रह्मा ने कहा कि माता जी मैं सौगंध खाकर पिता की तलाश करने गया था। परन्तु पिता (ब्रह्मा) के दर्शन हुए नहीं। आप के पास आने में शर्म लग रही थी। इसलिए हमने झूठ बोल दिया तब माता (दुर्गा) ने कहा कि अब मैं तुम्हें शाप देती है।
ब्रह्मा को शाप :-- तेरी पूजा जग में नहीं होगी। आगे तेरे वंशज होंगे वे बहुत पाखण्ड करेंगे। झूठी बात बना कर जग को ठगंगे। ऊपर से तो कर्म काण्ड करते दिखाई देंगे अन्दर से विकार करेंगे कथा पुराणों को पढ़कर सुनाया करेंगे, स्वयं को ज्ञान नहीं होगा कि सद्ग्रन्थों में वास्तविकता क्या है, फिर भी मान वश तथा धन प्राप्ति के लिए गुरु बन कर अनुयाइयों को लोकवेद (शास्त्र विरुद्ध दंत कथा) सुनाया करेंगे। देवी-देवों की पूजा करके तथा करवाके, दूसरों की निन्दा करके कष्ट पर कष्ट उठायेंगे। जो उनके अनुयाई होंगे उनको परमार्थ नहीं बताएंगे। दक्षिणा के लिए जगत को गुमराह करते रहेंगे अपने आपको सबसे अच्छा मानेंगे, दूसरों को नीचा समझेंगे। जब माता के मुख से यह सुना तो ब्रह्मा मुर्छित होकर जमीन पर गिर गया। बहुत समय उपरान्त होश में आया।
गायत्री को शाप:-- तेरे कई सांड पति होंगे तू मृतलोक में गाय बनेगी।
पुहपवति को शाप : -- तेरी जगह गंदगी में होगी। तेरे फूलों को कोई पूजा में नहीं लाएगा। इस झूठी गवाही के कारण तुझे यह नरक भोगना होगा तेरा नाम केवड़ा केतकी होगा। (हरियाणा में कुसोंधी कहते हैं। यह गंदगी (कुरड़ियों) वाली जगह पर होती है।)
इस प्रकार तीनों को शाप देकर माता भवानी बहुत पछताई। {(इस प्रकार पहले तो जीव बिना सोचे मन (काल निरंजन) के प्रभाव से गलत कार्य कर देता है परन्तु जब आत्मा (सत्पुरुष अंश) के प्रभाव से उसे ज्ञान होता है तो पीछे पछताना पड़ता है। जिस प्रकार माता-पिता अपने बच्चों को छोटी सी गलती कारण ताड़ते हैं (क्रोधवश होकर) परन्तु बाद में बहुत पछताते हैं। यही प्रक्रिया मन (काल-निरंजन) के प्रभाव से सर्व जीवों में क्रियावान हो रही है। हाँ, यहाँ एक बात विशेष है कि निरंजन (काल-ब्रह्म) ने भी अपना कानून बना रखा है कि यदि कोई जीव किसी दुर्बल जीव को सताएगा तो उसे उसका बदला देना पड़ेगा।
काल ब्रह्म द्वारा दुर्गा को श्राप:-
जब आदि भवानी प्रकृति/ अष्टांगी ने ब्रह्मा, गायत्री व पहुपवती को श्राप दिया तो अलख निरंजन ,(ब्रह्म काल )ने कहा कि है भवानी / दुर्गा यह आपने अच्छा नहीं किया अब मैं निरंजन आपको श्राप देता हूं कि द्वापर युग में तेरे भी पांच पति होंगे। द्रोपती ही आदिमाया का अवतार हुई है। जब यह आकाशवाणी हुई तो आधी माया ने कहा कि है ज्योति निरंजन मैं तेरे वंश में हूं जो चाहे जो कर ले।
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