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दिव्य धर्म यज्ञ दिवस

 


युगो युगो पर्यंत पूर्ण परमात्मा अपने तेजोमय रूप को सरल ( हलका)करते हुए धरती पर अवतरित होते हैं अलग-अलग युगों में परमात्मा के अलग-अलग नाम होते हैं जैसे सतयुग में सत सुकृत नाम से , द्वापर में करुणामय नाम से , त्रेता में मुनींद्र ऋषि के नाम से और कलयुग में परमात्मा कबीर (कविर्देव ) नाम से परमात्मा अवतरित होते हैं औरअपनी हंस आत्माओं को जो काल के चक्कर में फंसकर दुखी हो रही है उनको तत्वज्ञान का बोध कराते हैं स्वयं एक सतगुरु की भूमिका निभा कर उनको नाम दीक्षा ( मोक्ष मंत्र) प्रदान करते हैं ।और धर्म भंडारे यानी के (दिव्य धर्म यज्ञ) करते हैं और अपने शिष्य (भक्तों) को भी दिव्य धर्म यज्ञ करने की प्रेरणा भी देते है जिससे उनके मोक्ष मार्ग में आने वाली बाधाएं जो काल भगवान द्वारा बनाई गई है उनका मर्दन करता हुआ सतलोक ले जाते हैं इस धर्म भंडारे से उनके पाप कर्मों का कर्म दंड जो काल भगवान ने निर्धारित किया हुआ होता है( नाम दीक्षा) मंत्रों की शक्ति से उस कर्म दंड का कर्ज उतार दिया जाता है इस  धर्म भंडारे में आने वाली हंस आत्माओं को पांचों यज्ञ (ज्ञान यज्ञ, दान यज्ञ, प्रणाम यज्ञ, हवन यज्ञ ध्यान यज्ञ और धर्म यज्ञ ,)का फल एक साथ मिलता है


पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब द्वारा 18 लाख लोगों को धर्म भंडारा करवाना:-


 दिल्ली के शासक सिकंदर लोदी के दरबार में एक मुसलमान गुरुपीर शेखतकी हुआ करता था वह कबीर परमात्मा( कबीर जुलाहा) जो काशी में एक बुनकर (कपड़ा बुनने वाला)की भूमिका निभा रहे थे से ईर्ष्या करता था उसको कदम कदम पर नीचा दिखाने की कोशिश भी करता रहता था और वहां की जनता को पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब के खिलाफ भड़काता रहता था एक दिन उसने साजिश रची और कबीर साहिब के नाम से एक दिव्य धर्म भंडारे के आयोजन के नाम से कई लाखों की तादाद में चिट्टियां बांट दी चिट्ठी में लिखा गया कि कबीर जुलाहा पुत्र नीरू नीमा _____


_कार्तिक शुक्ल पक्ष की चौदस ,(चतुर्दशी) विक्रम संवत 1570 को ---तीन दिवसीय विशाल भंडारे का आयोजन कर रहे हैं इस भंडारे में जो भगत जन भाग लेगा उसको एक समय का खाना खाने के साथ-साथ एक सोने की मोहर एक दोहर (जो उस समय की सबसे कीमती चद्दर )मानी जाती थी देगा और साथ में सुखा सिद्धा जैसे ( आटा दाल चावल चिनी )आधी आधी भी देगा ।

दिन निश्चित हो गया काशी में लाखों की संख्या में महात्मा साधु जन व अन्य लोग दूर- दराज से इकट्ठे हो गए और सभी अपने हाथों में चिट्टियां लिए हुए थे और काशी के लोगों से पूछ रहे थे कि हमें कबीर पुत्र नीरू के यहां भंडारे में जाना है यहां बहुत विशाल भंडारा लगा हुआ है लेकिन काशी के लोगों ने देखा कि यहां तो कोई भंडारा है ही नहीं यह बात रविदास जो कबीर परमात्मा के साथ में रहा करते थे ने अपने कानों से सुनी तो वे कबीर परमात्मा के पास झोपड़ी में आ गया और बोला कि हे गुरुदेव काशी नगरी में बहुत लोगों का तांता लगा हुआ है और बोल रहे हैं कि कबीर जुलाहा भंडारा करेगा । आपके नाम से किसी ने गलत दुष्प्रचार किया हुआ है कि कबीर साहब एक दिव्य धर्म भंडारे का आयोजन कर रहे हैं यह बात सुनकर कबीर साहेब ने रविदास से कहा कि हे रविदास झोपड़ी में अंदर आ जाओ और दरवाजा की कुंडी लगा कर चुपके से बैठ जाओ ।

 ये शेखतकी हमें यहां जीने नहीं देगा मैं अपने बच्चों को लेकर रात के समय में यहां से कहीं और चला जाऊंगा । पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब ने झोपड़ी में बैठे-बैठे ही लीला की एक अपना केशव रूप बनाया और सतलोक से 900000 (9लाख) बैलों पर बना बनाया 56 प्रकार के पकवान काशी में पहुंचा दिए टेंट तंबू लगाए दिव्या धर्म भंडारा वितरित करना शुरू किया ‌गया ।सतलोक से आई हंस आत्मा ही भंडारा वितरण का कार्य कर रही थी एक टेंन्ट से सभी प्रकार के व्यंजन आ रहे थे सभी भक्तात्मा और साधु जन भंडारे में स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद ले रहे थे और कह रहे थे हमने आज तक ऐसा भंडारा कभी नहीं खाया यह तो किसी दूसरे लोक से आए हुए पकवान लग रहें हैं जो हंस आत्माऐ भंडारा वितरित कर रही थी उनके पांव ज़मीन पर नहीं टिक रहे थे बल्कि धरती से 6 -6 ईचं ऊपर चल रहे थे‌ इतने स्वादिष्ट व्यंजन बने हुए थे कि बहुत से महात्माओं ने दो दो- तीन-तीन बार भंडारा किया क्योंकि भंडारा खाने के बाद उनको सोने की मोहर व दोहर मिल रही थी और साथ में सूखे अनाज सिद्धा मिल रहा था इस दिव्य धर्म भंडारे में 18 लाख लोगों ने भंडारा किया ।और वे आपस में एक दूसरे से चर्चा कर रहे थे कि कबीर कौन सा है और कहां है।

जब इस भंडारे के आयोजन का समाचार शेखतकी को मिला तो वह सिकंदर लोदी जो दिल्ली के बादशाह थे से बोला कि तुम्हारे गुरुजी ने तुम्हें याद किया है उन्होंने भंडारा दिया हुआ है आप नहीं जाओगे सिकंदर लोदी ने कहा कि मेरे गुरु जी मुझे बुलाए और मैं ना जाऊं ऐसा तो हो ही नहीं सकता मैं अवश्य जाऊंगा राजा ने सेवको को आदेश दिया कि हमें काशी के लिए रवाना होना है तैयारी की जाए । सिकंदर लोदी और शेखतकी व अन्य मंत्रियों के साथ काशी में आ गए।

साथ में काशी नरेश वीर सिंह बघेल सहित सभी भंडारा स्थल पर पहुंचे भंडारा का नजारा देखने के बाद सिकंदर लोदी व वीर सिंह बघेल कबीर साहिब की झोपड़ी के पास पहुंचे।बादशाह सिकंदर लोदी आश्चर्यचकित होकर बोले हे गुरुवर, हे मालिक , आप पूर्ण परमात्मा हो आप की लीला अपरंपार है कृपया हमें दर्शन दीजिए । पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जो झोपड़ी में बैठे हुए लीला कर रहे थे बादशाहा ने कुटिया के बाहर आवाज लगाई हे गुरुदेव जरा दरवाजा खोलो आपका दास सिकंदर लोदी आया है मैंने आपको पहचान लिया हे भगवन ,मुझे दर्शन दो और साथ में वीर सिंह बघेल भी है कबीर साहेब के कई बार मना करने बाद जब बादशाह नहीं माने तो पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब ने रविदास जी से कहा कि रविदास जी खोल दो कुंडी और इनको अंदर आने दो । वीर सिंह बघेल और सिकंदर लोदी ने मुकुट सहित पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब के चरणों में दंडवत की और आशीर्वाद लिया और कहां हे परमात्मा बाहर बहुत बड़ा भंडारा चल रहा है और लाखों लोग भंडारा कर रहे हैं सभी आपके दर्शन करने के इच्छुक है । हे मालिक कृपया हमारे साथ भंडारे में आइए और सभी को दर्शन देने कि दया किजिए । हे दयानिधि आपने तो रंग लगा रखे हैं और सभी बोल रहे हैं कि ऐसा भंडारा कहीं देखा ना किया ना खाया ।हे परवरदिगार आपकी लीला अपरंपार है आप पूर्ण परमात्मा हो कबीर साहेब झोपड़ी से बाहर आए और जहां पर भंडारा चल रहा था वहां पर गए दर्शन दिए और सत्संग किया कई हजार लोगों ने सत्संग सुना और किया नाम दीक्षा ग्रहण की यह दिव्य धर्म भंडारा 3 दिनों तक चला जब भंडारे का समापन हुआ 9 लाख बैल और जो हसांत्माऐं सतलोक से भंडारा वितरण के लिए आई हुई थी जाने लगी तब पूर्ण परमात्मा और केशव नाम के बंजारा जो पूर्ण परमात्मा का ही रूप थे देखा कि गंगा नदी जो अपने पूरे आवेग से बह रही थी जिसके तट पर यह दिव्या धर्म भंडारा हो रहा था पूर्ण परमात्मा ने आदेश दिया कि आप सभी सतलोक चले जाओ सभी 900000 बैल और हंस आत्माएं जो भंडारा वितरण के लिए आई हुई थी गंगा में प्रवेश किया तो गंगा के पानी का बहाव बिल्कुल अपने निम्न स्तर पर हो गया और गंगा ने उनको रास्ता दिया है वें 900000 (9लाख) बैल और सभी हंस आत्माऐं परमात्मा की जय जय कार के नारे लगाते हुए जा चुकी थी वहां पर खड़े हुए कुछ लोग केशव बंजारा से कह रहे थे कि आपके बैल बहुत दूर जा चुके हैं तभी देखते ही देखते केशव रूप पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब के शरीर में समा गया। इस प्रकार इस दिव्य धर्म यज्ञ का समापन हुआ।

आया है बंजारा केशव आया है कसी नया माल अपार आगे से केशव आया है 9 लख बॉडी भरी विशंभर दीया कबीर भंडारा के शो आया है 


सुपज सुदर्शन के रूप में परमात्मा कबीर साहेब द्वारा दिव्या धर्म यज्ञ संपूर्ण करना:-

    द्वापर युग में महाभारत का युद्ध होने के बाद राजा युधिष्ठिर को भयानक स्वपन आने लगे तब उन्होंने स्वपन के बारे में श्री कृष्ण जी को बताया तो कृष्ण जी ने पांडव राजा युधिष्ठिर से एक धर्म यज्ञ करने को कहा कि युद्ध में मारे गए वीर योद्धाओं की मृत्यु का पाप आपके सिर पर लगा है आप एक धर्म यज्ञ भंडारा कीजिए जिससे आपके पाप क्षीण हो जाएंगे और आपको स्वप्न आने बंद हो जाएंगे । पांडव राजा युधिष्ठिर अपने पांचों भाइयों से सलाह मशवरा करने के बाद धर्म भंडारे की तैयारी करने लगे। इस धर्म यज्ञ भंडारे में अमूमन लगभग सौ (100) मण देसी घी से बनी सामग्री होती है। ज्यादा भी हो सकती है लेकिन कम नहीं होती है इस यज्ञ में देव ,दानव ,यक्ष ब्राह्मण , आदि और जो पृथ्वी पर सभी मनुष्य देह धारी प्राणि है को इस यज्ञ में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। पांडव भाइयों को चारों दिशाओं में निमंत्रण देने का कार्य सौंपा गया ।भीम को भी एक दिशा में निमंत्रण का कार्य सौंपा गया । जिस दिशा में भीमसेन को निमंत्रण का कार्य सौंपा गया है उसी दिशा में सुपज सुदर्शन नाम के एक भगत एक झोपड़ी में रहते थे निमंत्रण देते हुए भीमसेन उस भगत की झोपड़ी में भी पहुंच गया और बोला कि मैं राजा युधिष्ठिर का भाई भीमसेन हूं और ये ले निमंत्रण हम एक धर्म यज्ञ भंडारा कर रहे हैं आप इसमें सपरिवार आइए । लेकिन भगत सुदर्शन ने भीमसेन से कहा तुम्हारे यहां पाप का अन्न है मैं इसे नहीं खाऊंगा अगर आप मुझे ऐसी ऐसी सौ यज्ञों का फल देने का संकल्प करें तभी मैं इस अन्न को ग्रहण कर सकता हूं अन्यथा यह पाप का भोजन मैं नहीं खाऊंगा। तभी भीमसेन गुस्से में बोला अगर तुझे आना है तो आइये ना तो ना आइये और एक बात सुन अगर मुझे मेरे भाई राजा युधिष्ठिर का डर ना होता तो मैं अभी तेरा मुंह तोड़ देता और तुम्हें बताता कि क्यों नहीं आता । भीमसेन वहां से चला गया। धर्म यज्ञ भंडारा शुरू होने से कुछ दिन पहले ही भगत सुपज़ सुदर्शन भी एक लंबी यात्रा पर चले गए उन्होंने सोचा कि ये राजा लोग हैं ये मेरे साथ जबरदस्ती करेंगे क्यों ना मैं यहां से कुछ दिनों के लिए चला जाऊं । धर्म यज्ञ भंडारे का आयोजन शुरू हो गया। लेकिन इस भंडारे के संपूर्ण होने के लिए एक पंचमुखी शंख रखा गया। शर्त थी कि जब यह पंचमुखी शंख बजेगा तब ही यह धर्म भंडारा सफल होगा अन्यथा असफल समझा जाएगा । यज्ञ में सभी महापुरुषों ,भगत, ऋषि ,देवताओं ,वेद वक्ताओं, ब्राह्मणों आदि ने भोजन कर लिया और अपने अपने आसन पर बैठ गए । पृथ्वी के लगभग सभी जीवो ने इस भंडारे में शिरकत की भंडारा किया लेकिन शंख नहीं बजा तभी युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण जी से इशारे में कहा है कि संख तो नहीं बजा अब कौन रह गया । तभी श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा कि भीमसेन ने एक भगत सुदर्शन के साथ बदतमीजी की है और वह संत इस यज्ञ भंडारे में नहीं आया । श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि एक संत नहीं आया जिसकी वजह से यह संख नहीं बजा चलो उसके पास चलते हैं।और उसको मना कर लाते हैं जिसके आने से यह धर्म यज्ञ भण्डारा पूर्ण होगी तभी श्री कृष्ण सहित पांचो पांडव रथ में सवार होकर सुपज़ सुदर्शन कि झोपड़ी की तरफ चल दिए । झोपड़ी से लगभग 4 कोस,(12किलो मीटर)लगभग पहले ही रथ को रोक दिया और सभी पैदल चल कर संत सुपज सुदर्शन के पास पहुंचे और सभी ने संत जी को दंडवत प्रणाम किया । श्री कृष्ण जी बोले हे संत जी आप यज्ञ में क्यों शामिल नहीं हुए शुपज सुदर्शन जी के रूप में आए हुए पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जो बिल्कुल सुदर्शन का रूप ही बना रखा था ने कहा कि हे कृष्ण जी मैंने जो शर्त रखी थी वह शर्त मंजूर करोगे मैं तभी आ सकता हूं श्री कृष्ण जी ने कहा हे संत जी आपकी क्या शर्त है शुदर्शन रूप बैठे कबीर साहिब जी ने कहा की जो आप यज्ञ कर रहे हैं ऐसी ऐसी सौ(100) यज्ञों का फल मुझे संकल्प करोगे तो मैं इस यज्ञ में आऊंगा । यहां पर श्री कृष्ण जी ने बड़े विनम्र भाव से 

एक वाणी बोली:-
----- कि संत मिलन कू चालिए तज माया अभिमान।
ज्यो- ज्यौ पग आगे धरे वोहे सौ -सौ यज्ञ समान।।

और कहां की है ऋषिवर ये आपकी ही वाणी है जितने यज्ञों का फल आप का बनता है वह आप रख लीजिए बाकी हमारी झोली में डाल दीजिए तो बस फिर क्या था भगवान जो सुपज सुदर्शन के रूप में थे भाव विभोर हो गए और बोले चलो मैं चलता हूं। और भीमसेन कहा भाई भीमसेन यह खुंटी पर लटकी हुई हमारी सुमरनी (माला ) उतार कर देना भीमसेन माला उतारने लगा तो भीमसेन से यह माला हिली तक नहीं पसीना पसीना हो गया है परमात्मा बोलें क्यों रे पहलवान तू तो कह रहा था मैं तेरा मुंह तोड़ दूंगा तेरे से तो यह मेरी माला हिली तक नहीं है तू काहे का पहलवान तब भीमसेन ने चरणों में गिर कर संत जी से माफी मांगी कहां की है गुरुवर मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई आप मुझे क्षमा करें तभी शुपज सुदर्शन के रूप में बैठे परमात्मा ने हाथ का इशारा किया माला सुमरनी अपने आप ही परमात्मा के हाथों में आ गई और सभी वहां से यज्ञ के लिए प्रस्थान कर गए जब पूर्ण परमात्मा जो मैले कुचैले कपड़े और टूटी हुई जूती पहने यज्ञ में पहुंचे तो यज्ञ में उपस्थित वहां बैठे महापुरुषों व देवता आदि सभी अपने मुंह पर पल्ला लगा लगा कर हंस रहे थे की यह बजाएगा शंख तब श्री कृष्ण जी ने द्रोपती को बुलाया और कहा की बहन इस संत के समान इस धरती पर कोई भी संत नहीं है इसके लिए आप खुद रसोई तैयार कीजिए और इसे खिलाइए तभी यह शंख बजेगा और यज्ञ पूर्ण होगी द्रोपती ने ऐसा ही किया अपने हाथ से रसोई तैयार की और संत जी को भोजन परोसा गया संत जी ने सभी 56 प्रकार के भोजन का थोड़ा थोड़ा सा हिस्सा लिया और पांच ग्रास बना लिए जब संत जी सभी प्रकार केभोजन को एक साथ मिला रहे थे तब द्रोपती के मन में संत जी के प्रति कुछ गलत भाव मन में आ रहे थे और माथे पर त्यौड़ी चढ़ी हुई थी यह तो रहा गवार का गवार इसे खाना भी नहीं आता ।ये कहां का शंख बजाएगा जब पूर्ण परमात्मा ने पहला ग्रास लिया तो शंख थोड़ा सा बजा युधिष्ठिर की खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब जब परमात्मा एक ग्रास लेते तब- तब शंख

 थोड़ी आवाज करता लेकिन श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर की तरफ इशारा करके कहा यह शंख तो बिना रुके बहुत ऊंची आवाज में बजना है नहीं यह भी नहीं बजा । मायूस होकर राजा युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण जी से कहा अब इस धरा पर कौन रह गया जिसके आने से हमारा यज्ञ संपूर्ण होगी तभी श्री कृष्ण जी ने युधिष्ठिर से कहा इसी संत की कृपा से यह शंख बजेगा आओ द्रोपती के पास चलते हैं द्रोपती के पास जाकर श्री कृष्ण जी ने बोला बहन जब संत जी खाना खा रहे थे तब आपके मन में कोई संकित भाव तो नहीं आ रहे थे द्रोपती ने कहा हां भाई मेरे मन में ऐसा भाव आ रहा था कि इसे तो खाना भी यह तो रहा शूद्र का शूद्र इसे तो खाना भी नहीं आता ये कहां के शंख बनाएगा तभी श्री कृष्ण जी ने कहा बहन इस संत के एक बाल के समान तीनो लोक भी नहीं है यह तो बहुत बड़े संत हैं जाओ इन से क्षमा याचना करो और इनके पांव को धोकर पियो तभी जाकर कृपा करेंगे और आपकी यज्ञ संपूर्ण होगी द्रोपती ने क्षमा याचना की और एक पानी का पात्र और एक थाली( प्रांत) लेकर आ गई । संत जी के चरण धोकर चरणामृत पीने लगी तभी संख बिना रुके बजने लगा जब द्रोपती चरणामृत पी रही थी तभी उसको श्रीकृष्ण ने रोका और कहा बहन मुझे भी चरणामृत दो ऐसे संत का चरणामृत सौभाग्य से मिलता है । शंख बजने से युधिष्ठिर की खुशी का ठिकाना ना रहा और बोला कि हे केशव आपकी और इस संत की दया से हमारी यज्ञ संपूर्ण हो गई हम आपके और इस संत के बहुत-बहुत आभारी रहेंगे ।

गरीब, तेतीस कोटि यज्ञ में आए, सहंस अठासी सारे । द्वादश कोटि वेद के वक्ता, सुपच का शंख बज्या रे ||

ऐसी ही एक धर्म यज्ञ भंडारा भगत प्रल्हाद के पौत्र राजा बलि ने स्वर्ग का राज लेने की इच्छा से की थी उस यज्ञ में भी उसने सौ(100 )मण देसी घी से बनी सामग्री का प्रावधान था यज्ञ संपूर्ण होने जा रही थी तभी इंद्र का सिंहासन डोल गया ।


 राजगद्दी खतरे में है उन्होंने देखा कि राजा बलि स्वर्ग का राजा बनने की इच्छा से दिव्या धर्म यज्ञ कर रहा है तभी स्वर्ग के राजा इंद्र ने उपाय सोचा और वह विष्णु भगवान के पास पहुंच गया और बोला हे भगवान आप ही मेरे राज्य को बचा सकते हैं पृथ्वी पर राजा बलि स्वर्ग‌ की राज गद्दी प्राप्त करने के लिए दिव्या धर्म यज्ञ कर रहा है कृपया करके उसकी यज्ञ को खंडित कीजिए आप ही एकमात्र मेरा सहारा हो तब विष्णु भगवान ने कहा कि हे इंद्र जी आप जाइए और आपके राज्य को कुछ नहीं होगा मैं कुछ उपाय सोचता हूं जब यज्ञ में पूर्णाहुति दी जानी थी से पहले विष्णु भगवान बावने ब्राह्मण का रूप बनाकर राजा बलि के पास पहुंचे और कहा की हे राजन यज्ञ संपूर्ण कर रहे हैं कुछ दान दीक्षा दीजिए राजा बलि बोला बोल महात्मन क्या चाहिए तब बावना ब्राह्मण रूप में आए विष्णु जी ने कहा है कि तीन वचन भरो तब मैं आपसे दान लूंगा

  राजा बलि बोले की बोल महात्मा तीन वचन भर लिए क्या चाहिए मुझे(3डिग) 3 तीन कदम पृथ्वी दान दे दो राजा बलि ने कहा बस 3 कदम पृथ्वी चलो दे दी । ये शब्द सुनते ही विष्णु भगवान ने अपना बहुत ही बड़ा विराट रूप बना लिया और एक कदम में सारी पृथ्वी को ही नाप दिया और दूसरे का जब मैं आकाश व स्वर्ग लोक को नाप दिया 

विष्णु भगवान राजा बली को बोले हे राजा बलि आप तो दानी हो अब तीसरा कदम मैं कहां पर रखूं। राजा बलि बोला तीसरा कदम आप मेरे सिर पर रखिए तीसरा कदम सिर पर रखने के बाद विष्णु भगवान के रूप में आए हुए पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब अपने वास्तविक रूप में आए और कहा बोलो राजन तेरी क्या इच्छा है मैं आपकी श्रद्धा भक्ति से बहुत प्रसन्न हूं राजा बलि बोला है हे परमात्मा जब भगवान ही मेरे दरवाजे पर याचक बनकर आ गया तो मेरी क्या इच्छा शेष रह सकती है हे परमात्मा मुझे कोई इच्छा नहीं है

तभी परमात्मा ने खुश होकर राजा बलि को पाताल लोक का राज दे दिया ।

बली राजा ने धर्म किया था, हरि ने आ के दान लिया था।

पाताल लोक का राज दिया था, ऊँचा है दर्जा दानी का ।।



संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य मे दिव्या धर्म यज्ञ दिवस का आयोजन:--


ऐसी ही दिव्य धर्म यज्ञ संत शिरोमणि तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में नवंबर महीने की 7-8--9--2022को होने जा रहा है 

यह दिव्य धर्म यज्ञ दिवस भारतवर्ष में स्थित संत रामपाल जी महाराज के 9 आश्रमों में संपन्न होने जा रहा है जिसने लाखो भगत शिरकत करेंगे और इस धर्म यज्ञ भंडारे में आकर बहुत-बहुत पुण्य के भागी होंगे इस धर्म यज्ञ भंडारे में देश देशांतर से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लाखों भक्त आत्माएं इस दिव्या धर्म यज्ञ दिवस में भाग लेंगे इसमें आने वाले भक्तजनों को पांचों यज्ञों का फल प्राप्त होगा जैसे (दान यज्ञ, प्रणाम यज्ञ ,धर्म यज्ञ, हवन यज्ञ, और ज्ञान यज्ञ) ऐसी ऐसी धर्म यज्ञ युग - युगो के बाद पूर्ण परमात्मा की रजा से संपूर्ण होती है इस प्रकार की दिव्य धर्म यज्ञ में स्वयं पूर्ण परमात्मा अवतरित होते हैं ।वर्तमान समय में पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब स्वयं संत रामपाल जी महाराज जी के चोले में अवतरित हुए हैं इस पवित्र शुभ अवसर पर रक्तदान शिविर ,नाम दीक्षा व दहेज रहित रमणियां के साथ शुद्ध देसी घी के लड्डू जलेबी का विशाल भंडारा का आयोजन संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में किया जा रहा है आप सभी सप्रेम सपरिवार आने का आमंत्रित दिया जा रहा है 🙏

Rajbir Das🙏

     


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