गीता-सार
पूर्ण परमात्मा से प्राणी पूर्ण मुक्त (जन्म-मरण रहित) हो सकता है जो सतलोक में रहता है ।तथा प्रत्येक प्राणी के हृदय में और हर जीवात्मा के साथ ऐसे रहता है जैसे यायु रहती है गंध के साथ। भगवान ने अर्जुन को अपनी पूजा भी त्याग कर उस एक परमात्मा (पूर्ण ब्रह्म) की शरण में जाने की सलाह दी है कि उस परमात्मा की शरण में जाकर तेरा पूर्ण छुटकारा हो जायेगा अर्थात जन्म-मृत्यु से पूर्ण रूप से मुक्त हो जायेगा तथा मेरा (काल भगवान का) पूज्य देव भी वही पूर्ण परमात्मा है। (अनं० 18 के श्लोया नं 62,66 तथा अ० नं08 के श्लोक नं० 8,9, 10,20, 21,22)
• ब्रह्म लोक से लेकर ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि के लोक और ये स्वयं भी जन्म मरण व प
प्रलय में हैं। इसलिए ये अविनाशी नहीं हैं। जिसके फलस्वरूप इनके उपासक भी जन्म-मृत्यु मे ही हैं। (श्रीमद्भगवत हैंगीताअ नं 8 का श्लोक नं 16 व अ नं 9 का श्लोक 7)।
• देवी-देवताओं व तीनों गुणों (रजगुण-ब्रह्मा, सतगुण-विष्णु, तमगुण-शिव) की पूजा करना तथा भूत पूजा, पितर पूजा (श्राद्ध निकालना) मूर्खों की साधना ।। इन्हें घोर नरक में डाला जाएगा। (श्री मद्भागवत गीताअ०नं07 का श्लोक नं0 12 से 15 तथा 20 से 23 व अ०न०9का श्लोक नं0 25)
• भगवान तीन है :- 1. क्षर पुरुष (ब्रह्म), 2. अक्षर पुरुष (परब्रहा), 3. परम अक्षर पुरुष (निःअक्षर-पूर्ण ब्रह्म)।
क्षर पुरुष (काल) नाशवान है। अक्षर पुरुष (परब्रह्म) काल से ज्यादा स्थायी है परंतु यह भी वास्तव में अविनाशी नहीं है। पूर्ण ब्रह्म (परम अक्षर ब्रह्म) को वास्तव में अविनाशी परमेश्वर परमात्मा कहा जाता है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है। (श्री मद्भागवत गीता अ०नं 15 के श्लोक नं० 16-17-18) .
व्रत करने से भक्ति असफल है। (श्री मद्भागवत गीताअ०नं 6 का श्लोक नं० 16)
. गीता जी स्वयं काल (क्षर पुरुष) ने श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके बोली थी, न की कृष्णजी ने। गीता जी के अ०नं० 11 के श्लोक नं0 32 में भगवान काल कह रहा है कि ------ मैं इस समय सर्व लोकों को खाने के लिए आया हूँ तथा बढ़ा हुआ काल हूँ।
विचार करें- यहाँ आया हूँ अर्थात् प्रकट हुआ हूँ का स्पष्ट भाव है कि कहीं से कोई अन्य शक्ति आकर बोल रही है अन्यथा भगवान कृष्ण ये नहीं कहता कि मैं अब आया हूँ। और क्योंकि वे तो वहाँ पहले ही उपस्थित थे।
जो शास्त्रानुकूल यज्ञ-हवन आदि (पूर्ण गुरु के माध्यम से) नहीं करते वे पापी और चोर प्राणी है। (गीताअ०नं० 3 का श्लोक नं0 12)
कर्म सन्यास लेने वाले तथा कर्म योगी दोनो को एक जैसा भक्ति लाभ प्राप्त होता है। फिर भी कर्म सन्यासी (घर छोड़ कर जंगल में जाने बालों) से कर्म योगी (घर पर बाल बच्चों के पास रह कर भक्ति करने वाले) श्रेष्ठ हैं (गीताअ०नं० 5 का श्लोक नं० 2 )
• ब्रह्म (काल-क्षर पुरुष) की उत्पत्ति अविनाशी (पूर्ण ब्रह्म) परमात्मा से हुई। (अ०नं० 3 के श्लोक नं० 14-15)
सर्व ग्रन्थ सार
* गुल मालिका एक है। यह मानव सदृश है। इसका नाम कबीर साहिब (कविर्देव ) है , परम-अक्षर-पुरुष, वासुदेव (सर्वगतम ब्रह्म ) पूर्ण ब्रह्म,अल्लाह हू अकबर, सत्य कबीर ,हक्का कबीर आदि उसी पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब के उपमात्मक नाम है। उस पूर्ण परमात्मा का वास्तविक नाम कबीर साहेब ( कविर्देव )है इसलिए इसका नाम वेदों और पुराणों में वर्णित है
यही वह परमेश्वर है जिसने 6 दिन में सृष्टि रचकर सातवें दिन तख्त पर जा विराजा अर्थात विश्राम किया (पवित्र बाइबल उत्पत्ति ग्रंथ 1)
कुरान शरीफ सुरत फूर्कानि (25 आयात नंबर 52 से 59) तक फजाईले आमाल के अंदर फजाईले जिक्र फजाईले दरूद शरीफ आदि में स्पष्ट लिखा है।
* चारों वेद में भी कविर्दैव (कबीर परमेश्वर) नाम भी पूर्ण परमात्मा की महिमा बताई है।
यजुर्वेदः अ०. न० 1के श्लोक नं. 15, अ० न० 5 के श्लोक. 1 तथा 32अध्याय नंबर 29 के श्लोक नंबर 25 तथा अध्याय नंबर 40 के श्लोक नंबर 8 में प्रमाण है कि परमात्मा सह शरीर तथा साकार में है वह कबीर साहेब कविर्देव है जो पाप कर्म काटने वाला बंदी छोड़ जो सतलोक में रहता है ।
अथर्ववेद काण्ड नंबर 4 अनुवाक नंबर 1 के श्लोक नंबर 1 से 7 में स्पष्ट है कि सर्व ब्रह्मांडो का रचन हार (काल ब्रह्म) तथा( प्रकृति देवी दुर्गा )को भी उत्पन्न करने वाला वास्तव में अविनाशी जगतगुरु सत भक्ति प्रदान करने वाला भगत को सतलोक ले जाने वाला स्वयं कबीर साहिब है कविर्देव है।
ऋग्वेद के अनुसार युवा कबीर समर्थ कबीर साहेब है जो काल के बंधन रूपी किले को तोड़ने वाला है।( मंत्र नंबर 1 अध्याय नंबर 1 सूक्त नंबर 11 श्लोक नंबर 1 से 8 तक मंतर नंबर 10 सूक्त नंबर 90 श्लोक नंबर 1 से 16) तक पूर्ण प्रमाण है।
सामवेद सामवेद में प्रमाण है कि कबीर परमात्मा (कबीर्देव) सत भक्ति करने वाले भगत को तीन नाम प्रदान करके पवित्र करके कालके जाल से छूटवा कर तथा भगत की आयु भी बढ़ा देता है (संख्या नंबर 822) था वही परमात्मा कबीर (महान कविर्देव) सह शरीर आता है तथा कुछ समय मानव जैसा जीवन जी कर दिखाता है तथा उस समय चल रहे कूभक्ति मार्ग (असत्य भक्ति मार्ग) को सुचारू करता है (संख्या नंबर 1400)। इसके अलावा कबीर परमेश्वर की (कविर्) कबीर नाम से महिमा सामवेद के श्लोक संख्या नंबर 30,359 ,822 ,935 ,968 ,1130 1175 ,1204 ,1250 ,1286 ,1318 ,1400, 1562 ,1711 ,व1774 में है
गरीब दास जी महाराज के ग्रंथ साहिब में पारख के अंग में तथा गुरुदेव के अंग में और ब्रह्म बेदी आदि पूरे ग्रंथ साहिब में पूर्णब्रह्म कबीर काशी वाले (धाणक) जुलाहे का वर्णन परिपूर्ण है
गरीब हम सुल्तानी नानक तारे दादू को उपदेश दिया ।जात जुलाहा भेद न पाया काशी माहे कबीर हुआ।।
श्री गुरु नानक देव जी के महला पहला में कबीर परमात्मा का वर्णन है कि यही पूर्ण परमात्मा है जो धानक जुलाहा रूप में काशी में रहा तथा बेई नदी से गुरु नानक देव जी को सतलोक लेकर गया गुरु ग्रंथ साहब पृष्ठ नंबर 24 सीरी राग महला 1 पौड़ी पौड़ी 29 तथा पृष्ठ 721 राग तिलंग महला पहला में प्रत्यक्ष प्रमाण है कि नानक नीच कहे विचार धानक रूप रहा करतार ।
श्री धर्मदास साहेब के ग्रंथ में भी काशी वाले कबीर साहेब का प्रमाण है कि यही सत्पुरुष रूप में सत्यलोक के कुल मालिक हैं।
श्री दादू दास जी को कबीर साहेब सतलोक लेकर गए और आने के बाद आंखों देखा हाल कहा ----- जिन मोको निज नाम दिया सोई सतगुरु हमार ।
दादू दूसरा कोई नहीं कबीर सिरजनहार।।
श्री मलूक दास जी ने भी सतलोक का आंखों देखा वर्णन इस प्रकार किया----
दास मलूक सलूक कहत है खोजो खसम कबीर ।।
इन सब ग्रंथों तथा प्रत्यक्षदर्शी संतों की अमृतवाणीयां प्रमाणित है कि कबीर परमेश्वर ही कुल के मालिक हैं ।
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