शिव लिंग की पूजा कैसे प्रारम्भ हुई?
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महा शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। लोक मान्यतानुसार इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था। प्रत्येक वर्ष में आने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है जो कि इस वर्ष 11 मार्च को पूरे भारतवर्ष में मनाई जाएगी। शिवरात्रि पर विशेष रूप से शिवलिंग की पूजा की जाती है। (इस लेख में आगे पढ़ेंगे शिवलिंग का भेद क्या है।)
शिव महापुराण (जिसके प्रकाशक हैं "खेमराज श्री कष्णदास प्रकाशन मुंबई (बम्बई), हिन्दी टीकाकार (अनुवादक) हैं विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद जी मिश्र भाग-1 में विश्वेश्वर संहिता अध्याय 5 पष्ठ 11 पर नंदीकेश्वर यानि शिव के वाहन ने बताया कि शिव लिंग की पूजा कैसे प्रारम्भ हुई?
विद्यवेश्वर संहिता अध्याय 5 श्लोक 27-30 पूर्व काल में जो पहला कल्प जो लोक में विख्यात है। उस समय महात्मा ब्रह्मा और विष्णु का परस्पर युद्ध हुआ। (27) उनके मान को दूर करने को उनके बीच में उन निष्कल परमात्मा ने स्तम्भरूप अपना स्वरूप दिखाया।(28) तब जगत के हित की इच्छा से निर्गुण शिव ने उस तेजोमय स्तंभ से अपने लिंग आकार का स्वरूप दिखाया। (29) उसी दिन से लोक में वह निष्कल शिव जी का लिंग विख्यात हुआ। (30)
विद्यवेश्वर संहिता पष्ठ 18 अध्याय 9 श्लोक 40-43 :- इससे मैं अज्ञात स्वरूप हूँ। पीछे तुम्हें दर्शन के निमित साक्षात् ईश्वर तत्क्षणही में सगुण रूप हुआ हूँ।(40) मेरे ईश्वर रूप को सकलत्य जानों और यह निष्कल स्तंभ ब्रह्म का योधक है।(41) लिंग लक्षण होने से यह मेरा लिंग स्वरूप निर्गुण होगा। इस कारण हे पुत्रो! तुम नित्य इसकी अर्चना करना । (42) यह सदा मेरी आत्मा रूप है और मेरी निकटता का कारण है। लिंग और लिंगी के अमेद से यह महत्व नित्य पूजनीय है। (43)
विवेचन :- यह विवरण श्री शिव महापुराण (खेमराज श्री कष्ण दास प्रकाश मुंबई द्वारा प्रकाशित) से शब्दाशब्द लिखा है। इसमें स्पष्ट है कि काल ब्रह्म ने जान-बूझकर शास्त्र विरूद्ध साधना बताई है क्योंकि यह नहीं चाहता कि कोई शास्त्रों में वर्णित साधना करे। इसलिए अपने लिंग (गुप्तांग) की पूजा करने को कह दिया। पहले तो तेजोमय स्तंभ ब्रह्मा तथा विष्णु के बीच में खड़ा कर दिया। फिर शिव रूप में प्रकट होकर अपनी पत्नी दुर्गा को पार्वती रूप में प्रकट कर दिया और उस तेजोमय स्तंभ को गुप्त कर दिया और अपने लिंग (गुप्तांग) के आकार की पत्थर की मूर्ति प्रकट की तथा स्त्री के गुप्तांग (लिंगी) की पत्थर की मूर्ति प्रकट की। उस पत्थर के लिंग को लिंगी यानि स्त्री की योनि में प्रवेश करके ब्रह्मा तथा विष्णु से कहा कि यह लिंग तथा लिंग भेद रूप हैं यानि इन दोनों को ऐसे ही रखकर नित्य पूजा करना।
इसके पश्चात यह बेशर्म पूजा सब हिन्दुओं में देखा-देखी चल रही है। आप मंदिर में शिवलिंग को देखना। उसके चारों ओर स्त्री इन्द्री का चित्र है जिसमें शिवलिंग प्रविष्ट दिखाई देता है। यह पूजा काल ब्रह्म ने प्रचलित करके मानव समाज को दिशाहीन कर दिया। वेदों तथा गीता के विपरीत साधना बता दी आप जी ने ऊपर शिव पुराण भाग-1 में विद्यवेश्वर संहिता के पंष्ठ 11 पर अध्याय 5 श्लोक 27-30 में पढ़ा कि शिव ने जो तेजोमय स्तंभ खड़ा किया था। फिर उस स्तंभ को गुप्त करके पत्थर को अपने लिंग (गुप्तांग) का आकार दे दिया और बोला कि इसकी पूजा किया करो। इस तरह की बकवाद तो शरारती बच्चा जो पुराने समय में पशु चराता था, वह पारली किया करता जो वाद-विवाद में अन्य बालक से कहता था कि ले मेरे इस (गुप्तांग) की धोक मार ले। यही दशा शिवलिंग की पूजा बताने वाले काल ब्रह्मा यानि सदाशिव की है जो ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी के पूज्य पिता जी हैं। चेतावनी :- वक्त है, अब भी संभल जाओ। नहीं तो मानव जीवन का अवसर हाथ से जाने के पश्चात् रोने के अतिरिक्त कुछ नहीं रहेगा। गीता व वेदों का ज्ञान परम अक्षर ब्रह्म का बताया हुआ है। इसलिए वह प्रमाणित व लाभदायक है। आप देखें यह शिव लिंग का चित्र :
शिव का लिंग (गुप्तांग) का चित्र
इस शिवलिंग की पूजा अंध श्रद्धावान करते हैं जो शर्म की बात तो है ही, परंतु धर्म के विरूद्ध भी है क्योंकि यह गीता व वेद शास्त्रों में नहीं लिखी है।
इसका खण्डन सूक्ष्मवेद में इस प्रकार किया है कि :- वाणी :- घरै शिवा लिंगा बहु विधि रंगा, गाल बजा गहले। जे लिंग पूजें शिव साहिब मिले, तो पूजो क्यों ना खैले।
शब्दार्थ :- परमेश्वर कबीर जी ने समझाया है कि तत्वज्ञानहीन मूर्ति पूजक अपनी साधना को श्रेष्ठ बताने के लिए गहले यानि ढीठ व्यक्ति गाल बजाते हैं यानि व्यर्थ की बातें बड़बड़ करते हैं जिनका कोई शास्त्र आधार नहीं होता वे जनता को भ्रमित करने के लिए विविध प्रकार के रंग-बिरंगे पत्थर के शिवलिंग रखकर अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं।
कबीर जी ने कहा है कि मैं उन्हें बताना चाहता हूँ कि यदि शिव जी के लिंग को पूजने से शिव जी भगवान का लाभ लेना चाहते हो तो आप धोखे में हैं। यदि ऐसी बेशर्म साधना करनी है तो खागड़ (0x=Male Cow) के लिंग की पूजा कर लो जिससे गाय को गर्भ होता है उससे अमत दूध मिलता है । हल जोतने के लिए बैल व दूध पीने के लिए गाय उत्पन्न होती है जो प्रत्यक्ष लाभ दिखाई देता है। आपको पता है कि खागड़ के लिंग से कितना लाभ मिलता है फिर भी उसकी पूजा नहीं कर सकते क्योंकि यह बेशर्मी का कार्य है।
इससे स्पष्ट है कि आप अंध श्रद्धावानों को यही नहीं पता है कि यह पत्थर का बना शिवलिंग व जिसमें यह प्रविष्ट दिखाया है, यह क्या है? यदि आपको पता होता तो इसको एक आँख भी नहीं देखते, पूजा तो बहुत दूर की कौड़ी है।
0 Comments