होलिका दहन ----
अधर्म पर धर्म की जीत असत्य पर सत्य कि जीत और पाप पर पुण्य की जीत का सूचक है होली त्योहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. उससे अगले दिन ओला या फाग होली का होली मनाई जाती है भारत एक ग्रामीण प्रधान देश है इस दिन ग्रामीण माताएं अपने हाथों से बनाकर अपने छोटे बच्चों के गले में फलों मिठाई व फूलों की मालाएं पहनाती (डालती )हैं जिससे बच्चे बहुत खुश हो जाते हैं और माला में फल मिठाई को एक दूसरे को खिलाकर बहुत खुशी मनाते हैं होलिका दहन भारतीय त्योहारों में से एक प्रमुख बच्चों का त्योहार भी माना जाता है क्योंकि इसी दिन परमात्मा ने अपने भगत बच्चे प्रह्लाद को जीवन दान दिया था इस दिन बच्चे एक दूसरे पर रंग गुलाल फेंकते हैं और पिचकारी में रंग भर कर भरकर एक दूसरे पर मारते हैं लोग आपस में एक दुसरे पर रंग गुलाल फेंकते हैं मुंह पर लगाते हैं भारत एक ग्रामीण प्रधान देश है इसलिए ग्रामीण लोग इस त्यौहार को एक दूसरे पर पानी व कीचड़ उड़ेल कर (फेंक) कर मनाते हैं कुछ लोग इसे कोड़ों और लठ्ठ से मनाते है । कई स्थानों पर इसे फूलों की वर्षा द्वारा भी खेला जाता है ।
इस वर्ष अगर होली ही खेलना है तो राम नाम की होली खेलो
जैसे किरका जहर का ,रंग होरी हो
कहो कौन तीस खाये, राम रंग हो रही हो।
हिरण्यकश्यप एक राजा था उसने रजगुण ब्रह्मा जी देवता को भक्ति करके प्रसन्न किया ।ब्रह्मा जी ने कहा पुजारी मांगो क्या मांगना चाहते हो? हिरण्यकश्यप ने मांगा कि सुबह मरू, न शाम मरू, बाहर मरूं ,न भीतर मरूं ,दिन में मरुं ,ना रात मरुं ,12 मास में न मरू ,न आकाश में मरू, न धरती पर मंरु, ने मानव से मरू, ने पशु -पक्षी से मरू, ना देव ,से मरू ना दानव , आदि आदि ब्रह्मा जी ने कहा तथास्तु इसके पश्चात हिरण्यकश्यप ने अपने आपको अमर मान लिया और अपना नाम जाप करवाने को कहा । किसी कारणवश वह है विष्णु सतगुण से ईर्ष्या करता था।जो विष्णु का नाम जपता उसको मार देता उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु जी की भक्ति करता था उसको कितना सताया था अनेकों अत्याचार जुल्म किए लेकिन वह टस से मस ना हुआ और विष्णु की भक्ति करता रहा हैं ।
भक्त प्रह्लाद को भक्ति की प्रेरणा:--
हिरण्यकश्यप द्वारा जनता को बहुत ही प्रताड़ित किया जाता था वह जबरदस्ती सभी प्रजा जनों से अपना नाम का जाप करवाता अगर कोई उसका नाम जाप ना करें उसको मरवा देता बहुत अत्याचारी राजा हो गया था सभी छुप-छुपकर विष्णु को याद किया करते थे
एक कथा के अनुसार उस के राज्य में मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार कुम्हारी दंपत्ति रहा करते थे और मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य किया करते थे मिट्टी का एक बर्तन जिसको घडा( मटका) बोलते हैं में बिल्ली ने तीन चार बच्चों को जन्म दिया हुआ था और भूल वंश वह मटका भी बच्चों सहित आवा ( मिट्टी के बर्तन पकाने वाली भट्टी) में रख दिया बाद में कुम्हारी को याद आया कि बच्चों वाला मटका भी आवे में रख दिया वह तो अब जलकर मर ही जाएंगे तब उसने मन ही मन में पूर्ण परमात्मा (कबीर) को विष्णु रूप में याद किया तो कहा कि परमात्मा इन बच्चों की रक्षा करना।
और ऐसा चमत्कार हुआ कि भट्ठी में उस मटके और उसके चारों ओर इर्द-गिर्द जो मटके लगे हुए थे वह सभी कच्चे रह गए बाकी सभी पक गए पहले यह धारणा थी कि 21 वे दिन भट्टी को खोला जाता था उसमें से बर्तन निकाले जाते थे तब तक उस भट्टी की राख गर्म होती थी लेकिन अब 3 या 4 दिन में उस भट्टी को खोला गया परमात्मा की कृपा से वे बच्चे भी स्वस्थ मिले और राख भी ठंडी मिली।
यह घटना सारे राज्य में दबी आवाज में फैल गई कि विष्णु का नाम लेने से अग्नि की भट्टी में बिल्ली के बच्चे जीवित बच गए तब यह बात भक्त प्रह्लाद को भी मालूम पड़ी तो उसने विष्णु को ही भगवान मान लिया और वह उसकी ही भक्ति करने लग गया।
यहां पर एक पंक्ति होर चित्रार्थ होती है :-
कि सदा से होते आए भगवान भगत के बस में ---- -सदा से होते आए भगवान भगत के बस में।
होलिका दहन :-
होलिका जो हिरण्याक्ष व हिरण्यकश्यप की बहन और ऋषि कश्यप की पुत्री थी जिसने ब्रह्मा से वरदान स्वरूप अग्नि में न जलने वाली एक ऐसी ओढ़नी (शाल) चद्दर प्राप्त हुई थी जिसको ओढकर अगर वह अग्नि में प्रवेश कर जाए तो उसे न तो अग्नि की तपन लगेगी और ना ही वह अग्नि में जलेगी। इस ओढ़नी के प्राप्त होने के बाद उस ओढ़नी कोओढ कर होलिका अपने भाई हिरण्यकशिपु के कहने पर अपने भतीजे 10 वर्ष के बच्चे परहलाद को जान से मारने के लिए एक लकड़ियों के ढेर पर लेकर बैठ गई और उन दोनों के बैठने के बाद लकड़ियों में अग्नि प्रज्वलित की गई ।
परमात्मा द्वारा प्रह्लाद के प्राणों की रक्षा:-
लकड़ियों के ढेर में अग्नि प्रज्वलित होने के बाद लकड़िया धूं धूं कर के जलने लगी होलीका ने बच्चे प्रह्लाद को अपनी गोद में बैठाया हुआ था और स्वयं उस ओढ़नी को ओढ़ लिया था जिसे ओढकर आग में न जलने का वरदान मिला हुआ था । परमात्मा की ऐसी दया हुई और तेज हवा चली हवा के झोंके से वह ओढ़नी भगत प्रहलाद के शरीर पर जा गिरी जिससे भक्त प्रह्लाद को अग्नि में कोई हानि नहीं हुई और होलीका स्वयं जलकर राख हो गई।
यहां पर एक पंक्ति चित्रार्थ होती है:----
" जाको राखे साइयां मार सके ना कोय।
बाल न बांका कर सके चाहे जग बैरी होय"।।
"हवा फानूस बनके जिसकी रक्षा करें।
वह शम्मा क्या बुझे जिसे रोशन खुदा करें"।।
राजा हिरण्यकश्यप द्वारा भगत प्रहलाद को दूसरी बार मरवाना:-
भगत प्रल्हाद ने हिरण्यकश्यप को भगवान न माना और विष्णु की भक्ति में लगा रहा तब राजा ने उसको मरवाना चाहा । राजा ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि प्रह्लाद को सर्पों से भरे जंगल में ले जाओ सैनिकों ने आदेश का पालन किया और भगत प्रल्हाद को सर्पों से भरे जंगल में फेंक दिया । अगले दिन राजा ने कहा की प्रह्लाद के मृत शरीर को लेकर आओ सैनिक जंगल में गए और और उस घटना को देखकर आश्चर्यचकित रह गए की बच्चे प्रह्लाद पर सर्पो ने अपने फनो से धूप में छाया कर रखी है तब वे सैनिक बच्चे प्रह्लाद के पास गए तो सभी सर्प इधर उधर भाग गए और भक्त प्रह्लाद को उठाया जो धूप में सो रहा था
सैनिकों ने यह सारी घटना राजा को बताई तो राजा ने कहा कि इसको पहाड़ ( पर्वत) से फेंक दो जिससे इसकी मृत्यु हो जाएगी । वहां पर भी परमात्मा ने भगत प्रहलाद की रक्षा की जिससे उसकी भक्ति और दृढ़ हो गई । और वह ज्यादा भक्ति करने लगा वहां से बचने के बाद राजा ने उस पर अपने अत्याचार करने बंद नहीं किए और उसने लोहे का लाल खंभ को गर्म करवाया और भक्त प्रह्लाद को कहा या तो मुझे भगवान मान और विष्णु के भक्ति छोड़ दें या फिर लोहे के गर्म लाल खंभ को अपनी बाहों में भरो नहीं तो मैं तुम्हारे तलवार से टुकड़े-टुकड़े कर दूंगा। तब भगत प्रह्लाद ने कहा कि हे अत्याचारी तू भगवान नहीं है चाहे कितने अत्याचार कर ले परमात्मा मेरी रक्षा करेंगे।
भगत प्रल्हाद को परमात्मा ने ऐसी प्रेरणा की कि उस लोहे के गर्म लाल खंभ के ऊपर एक चींटी रेंगती दिखाई दी यह देख कर भक्त प्रह्लाद ने लोहे के गर्म लाल खंभ को अपनी बाहों में भर लिया । जो परमात्मा की शक्ति से ठंडा व शीतल हो चुका था। भगत प्रल्हाद पर असहनीय जुलुम अत्याचार होते देख परमात्मा नरसिंह रूप धारण कर प्रकट हुए और हिरण्यकश्यप को उसके घर की दहलीज यानी के दरवाजे की मध्य में पकड़ा वह सायं काल का समय था ना दिन था ना रात था और ना बाहर था ना भीतर ( अन्दर )दरवाजे का मध्य था न हथियार था न औजार था तब परमात्मा ने अपने नाखूनों से उसकी छाती को फाड़ दिया जिससे वह मृत्यु को प्राप्त हो गया और भगत प्रहलाद की रक्षा की
।गरीब ,प्रहलाद भक्त कुँ दई कसौटी, चौरासी बर ताया।
नरसिंह रूप धरे नारायण,खंभ फाड़ कर आया।।
यहां पर कबीर परमात्मा कहते हैं :-
"जो जन मेरी शरण है ताका हूं मैं दास"।
गैल गैल लाग्या फिरु जब लग धरती आकाश ।
गरीब, सौ छल छिद्र मैं करूं, अपने जन के काज।
हिरणाकुश ज्यूं मार हूँ, नरसिंघ धरहूँ साज।।
यहां पर यह बात है विचार करने की है कि हिरण्यकश्यप ब्रह्मा की भक्ति व रजोगुण से उपासक थे रजोगुण की उपासना ने उन्हें अहंकारी बना दिया और वह अपने पुत्र का ही दुश्मन हो गया अंत समय में दुर्गति को प्राप्त हुआ।
पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब जी कहते हैं :--
"ब्राह्मण बाणा और कर्म कसाई"।
"हिरणाकुश छाती तुड़वाई"।।
कबीर परमात्मा जी कहते हैं :--
गुण तीनों की भक्ति में यह भूल पढ़्यो संसार ।
कहे कबीर निज नाम (सतनाम)बिना कैसे उतरे पार।।
" सतनाम पालडे रंग हो रही हो ,
14 लोक चढ़ाए राम रंग होरी हो।
तीन लोक पासिंग धरे रंग होरी हो,
तो भी तूले ना तुलाया राम रंग हो रही हो"।।
सभी पाठक जनों से अनुरोध है की इस होली पर वह सिर्फ राम नाम की होली खेले जो चीर स्थाई है होली का मतलब खुशी होता है अतः सभी से अनुरोध है कि पूर्ण संत की शरण में जाकर नाम दीक्षा ग्रहण करें और संत द्वारा बताए गए मर्यादा नियम में रहकर भक्ति करें।
इस समय पूरे विश्व में एक ही पूर्ण संत है और वे संत रामपाल जी महाराज है सतलोक आश्रम बरवाला हिसार हरियाणा भारत से नाम दीक्षा ग्रहण करें और अपना कल्याण कराएं। और अपने निजधाम सतलोक में जाएं वहां पर खुशी ही खुशी है
गरीब दास जी की वाणी में सतलोक का वर्णन इस प्रकार है :--
जहां संखों लहर मेहर की उपजे, कहर नहीं जहां कोई।
दास गरीब अचल अविनाशी सुख का सागर सोई।।
अतः भक्तों से अनुरोध है कि इस वर्ष वह सिर्फ राम नाम की होली खेले।
बंदी छोड़ कबीर साहिब की जय
बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज की जय
सत साहेब जी
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