सत्यार्थप्रकाश की सच्चाई
सत्यार्थ प्रकाश आर्य समाज का प्रमुख ग्रन्थ है जिसकी रचना महर्षि दयानन्द सरस्वती ने 1875 ई में हिन्दी में की थी।ग्रन्थ की रचना का कार्य स्वामी जी ने उदयपुर में किया। प्रथम संस्करण का प्रकाशन अजमेर में हुआ था।
यहां ये बताना आवश्यक है कि ये वही शख्स हैं जिसने वेदों की ओर चलो का नारा दिया। लेकिन अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है स्वामी दयानंद जी को न तो वेदों का पूर्ण ज्ञान था और ना ही खगोल भूगोल का ज्ञान था बल्कि भांग के नशे में अपनी सूझबूझ खोया हुआ था दिखाई दे रहा है जिसकी सच्चाई आप इन्हीं के द्वारा रची पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश मैं देख लो जो सत्या का अर्थ का मतलब ही गलत दिखा रही है ऐसी पुस्तक का नाम सत्यार्थ प्रकाश की बजाय झूठा अर्थ प्रकाश होना चाहिए था इस पुस्तक में सत्य ज्ञान की कल्पना भी नहीं मात्र नाम नाम है सत्यार्थ प्रकाश है यह पुस्तक पूर्ण रूप से समाज को दिशाहीन करती है और इस पुस्तक मे गोबर ज्ञान भरा हुआ है जो समाज को सही दिशा ना दिखा कर उल्टी दिशा मे ले जाने वाली पुस्तक है । जिस के कुछ अंश हम आपको बानगी के तौर पर दिखा रहे हैं
सूर्य पर जीवन :-
सूर्य पर जीवन है तथा वहां भी पृथ्वी की तरह स्त्री पुरुष व अन्य प्राणी रहते हैं। (सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 8, पृष्ठ 197-198)
पुनर्विवाह गलत मानना:-
पुनर्विवाह से स्त्री का पतिव्रत भंग होता है (पृष्ठ 97) इसलिए विवाह के स्थान पर एक विधवा स्त्री 11 पुरुषों के साथ नियोग कर सकती है। एक विधुर पुरुष भी 11 विधवाओं के साथ नियोग कर सकता है। (पृष्ठ 101)
यदि स्त्री का पति दीर्घ रोगी है तो वह अन्य पुरुष से सन्तान उत्पन्न कर सकती है। (सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 4, पृष्ठ 102)
जिस कन्या के शरीर मे बाल हों उससे विवाह न करें। (सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 4, पृष्ठ 70)
दुल्हन के प्रकार:-
जिस कन्या की आंखे भूरी हो तथा पूरे कुल में किसी को दमा, तपेदिक, कुष्ठ, बवासीर या पेट की खराबी हो उससे विवाह ही न करें। (सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 4, पृष्ठ 70, पृष्ठ 71)
विवाह की श्रेष्ठ उम्र:-
24 वर्ष की कन्या का विवाह 48 वर्ष के पुरुष से उत्तम। (सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 4, पृष्ठ 71)
पति दूर गया हो तो 8 वर्ष राह देखे और अन्य से सन्तान उत्तपत्ति कर ले। (सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 4, पृष्ठ 102)
सिक्खों के गुरु गुरु नानक देव पर अभद्र टिप्पणी:-
सिख धर्म के प्रवर्तक गुरुनानक जी मूर्ख, ढोंगी व अभिमानी हैं। तथा गुरुग्रन्थ साहेब पर अभद्र टिप्पणी। (सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 11, पृष्ठ 307-309)
उच्च तथा नीच जाति का प्रचार प्रसार करना ;-
कबीर जी तम्बूरा लेकर गाते थे और मूर्ख नीच जुलाहे उनकी बातों में फंस गए। (सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 11, पृष्ठ 306)
नीच, भंगी, चमार के हाथों का खाना न खाएं। (सत्यार्थ प्रकाश पृष्ठ 154)
हजरत मोहम्मद पर गलत टिप्पणी:-
हज़रत मुहम्मद और उनके अनुयायी मूर्ख और जंगली बताया है। मुसलमानों का खुदा अन्यायकारी और बेसमझ है। (सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 14, पृष्ठ 455, 477, 480, 483, 485, 467) हजरत मुहम्मद ने अज्ञानियों को फंसाया है (पृष्ठ 470)। पृष्ठ 492, 493, 498, 499 मुहम्मद जी को विषयी यानी भोग विलास करने वाला कहा।
मुसलमानों का खुदा हो धोखेबाज है तो मुसलमान भी इसलिए धोखेबाज हैं। (पृष्ठ 470)
ईसाई धर्म पर अभद्र टिप्पणी:-
सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 13 में ईसाई धर्म के बारे में अभद्र बातें लिखीं। पृष्ठ 429 पर कहा कि यह झूठ है कि ईसा मसीह अपने आशीर्वाद से रोग ठीक करते थे।
सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 13, पृष्ठ 436 में दयानंद जी ने लिखा है कि ईसा मसीह जैसे भयंकर पीड़ा में मरने से अच्छा है फांसी लगा ली जाए।
ईसा मसीह ने माता पिता की सेवा नहीं कि और अपने अनुयायियों को भी न करने दी इसलिए जल्दी मृत्यु को प्राप्त हुए। (सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 13, पृष्ठ 426, 430) आदि आदि ।
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