सतगुरु कबीर साहेब स्वयं पूर्णब्रह्म (सतपुरुष -परम अक्षर ब्रह्म) हैं। यह परम अक्षर ब्रह्म(अविनाशी) भगवान वैसे तो चारों युगों में आते हैं। सतयुग सतसुकृत नामसे, त्रेता युग में मुनीन्द्र नाम से, द्वापर युग में करुणामय नाम से और कलियुग में वास्तविक (कविर्देव) कबीर नाम से इस मृत मण्डल में आऐ है। कलयुग में परमेश्वर कबीर (एवं कविर्देव) वि.सं. 1455 (सन् 1398) ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को लहर तारा तालाब काशी(बनारस) में एक कमल के फूल पर ब्रह्ममहूर्त में एक नवजात शिशु के रूप में प्रकट हुए। स्नान करने के लिए गए नीरू-नीमा नामक जुलाहा दम्पत्ति को प्राप्त हुए। काजी धार्मिक पुस्तक कुरान के आधार पर नामांकरण करने लगे तो उस पुस्तक(कुनि, कतेब) के सर्व अक्षर कबीर-कबीर-कबीर हो गए। साहेब कबीर (कविर्देव) ने स्वयं बोल कर कहा कि मेरा नाम कबीर' ही होगा।
साहेब कबीर के सुन्नत करने के समय आए व्यक्ति को कई लिंग दिखाए। वह व्यक्ति भयभीत होकर सुन्नत किए बिना ही चला गया। पाँच वर्ष की आयु में कबीर परमेश्वर ( कविर्देव ने)104 वर्षीय स्वामी रामानन्द जी का शिष्य बन कर स्वामी रामानन्द जी को सतलोक का मार्ग बताया तथा सतलोक दर्शाया। एक समय रामानन्द जी का दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी ने कत्ल कर दिया। सिकन्दर 1. राजा की जलन का असाध्य रोग हाथ लगाते ही समाप्त कर दिया। सिकन्दर राजा ने एक गाय के तलवार से दो टुकड़े करवाए तथा कहा कि आप(कबीर साहेब) अपने आप को परमात्मा कहते हो तो इस मृतक गाय को जीवित कर दो। उसी समय कबीर साहेब ने हाथ स्पर्श करते ही गाय को तथा उसके गर्भ में बछड़े के भी दो टुकड़े हो गए थे, वो भी जीवित किया तथा दूध की बाल्टी भर दी और कहा कि गाय अपनी अम्मा है, इस पर छुरी ना बाह। गरीबदास घी दूध को, सर्व आत्म खाय।। -
साहेब कबीर की कोई पत्नी नहीं थी। शेखतकी राजा सिंकदर लौधी की अज्ञानता हटाने के लिए जो कह रहे थे कि हम तो आपको भगवान तब माने जब आप इन मुर्दों को जीवित कर दे। फिर कबीर साहेब ने दो बच्चों कमाल व कमाली को मुर्दे से जीवित किया तथा अपने बच्चों के रूप में पालन पोषण किया साहेब कबीर के माता-पिता नहीं थे वे स्वयंभू थे।
फिर 120 वर्ष तक अपने सतमार्ग व सतलोक की जानकारी दे कर मगहर स्थान पर जिला कबीर नगर(पुराना बस्ती जिला) नजदीक गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) में लाखों भक्तजनों तथा दो नरेशों बिजली खाँ (मगहर के नवाब) तथा बीर सिंह बघेल (कांशी नरेश) की उपस्थिति में सत्यलोक चले गए। शरीर के स्थान पर सुगंधित फूल पाए थे। शरीर नहीं मिला था। वि.सं. 1575(सन् 1518) में वह परम शक्ति अपने परमधाम(सतलोक-सत्यधाम) में वापिस सह शरीर चले गए तथा आकाशवाणी की कि देखों मैं सत्यलोक जा रहा हूँ। उपस्थित श्रद्धालुओं ने उपर को देखा तो एक प्रकाशमय शरीर आकाश में जा रहा था। हिन्दुओं तथा मुस्लमानों ने आधे-आधे फूल तथा एक-एक चद्दर बांट कर मगहर नगर में साथ-साथ सौ फुट के अन्तर पर दो यादगारें बना रखी हैं जो आज भी साक्षी हैं तथा लहरतारा तालाब भी आज प्रत्यक्ष प्रमाण है, वहाँ कबीर पंथी दो आश्रम बने हैं जो यही सत्य विवरण बताते हैं।
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