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सतलोक गमन दिवस

Sant Rampal Ji Maharaj

सतलोक गमन दिवस

February 23, 2021




प्रभु कबीर जी का मगहर से सशरीर सत्यलोक गमन तथा सूखी नदी में नीर बहाना"

इस भ्रम को तोड़ने के लिए कि जो मगहर में मरता है वह गधा बनता है और कांशी में मरने वाला स्वर्ग जाता है। (बन्दी छोड़ कहते थे कि सही विधि से भक्ति करने वाला प्राणी चाहे वह कहीं पर प्राण त्याग दे वह अपने सही स्थान पर जाएगा।) उन अज्ञानियों का भ्रम निवारण करने के लिए कबीर साहेब ने कहा कि मैं मगहर में मरूँगा और सभी ज्योतिषी वाले देख लेना कि मैं कहाँ जाऊँगा? नरक में जाऊँगा या स्वर्ग से भी ऊपर सतलोक में। कबीर साहेब ने काशी से मगहर के लिये प्रस्थान किया।

             बीर सिंह बघेला और बिजली खाँ कबीर साहब  के शिष्य थे। बीर सिंह ने अपनी सेना साथ ले ली कि कबीर साहेब वहाँ पर अपना शरीर छोड़ेंगे। इस शरीर को लेकर हम काँशी में हिन्दू रीति से अंतिम संस्कार करेंगे। यदि मुसलमान नहीं मानेंगे तो लड़ाई कर के शव को लायेंगे सेना भी साथ ले ली।

         अब इतनी बुद्धि है हमारी। कबीर परमेश्वर जी हर रोज शिक्षा दिया करते कि हिन्दू मुसलमान दो नहीं है। अंत में फिर वही बुद्धि। उधर से बिजली खाँ पठान को पता चला कि कबीर साहेब यहाँ पर आ रहे हैं। बिजली खां पठान ने सतगुरू तथा सर्व आने वाले भक्तों तथा दर्शकों की खाने तथा पीने की सारी व्यवस्था की और कहा कि सेना तुम भी तैयार कर लो। हम अपने पीर कबीर साहेब का यहाँ पर मुसलमान विधि से अंतिम संस्कार करेंगे ।।

       कबीर साहेब के मगहर पहुँचने के बाद बिजली खाँ ने कहा कि महाराज जी स्नान करो। कबीर साहेब ने कहा कि बहते पानी में स्नान करूँगा।।


         बिजली खान ने कहा कि सतगुरू देव यहाँ पर साथ में एक आमी नदी है, वह भगवान शिव के श्राप से सूखी पड़ी है। उसमें पानी नहीं है। जैसी व्यवस्था दास से हो पाई है पानी का प्रबंध करवाया है। आपके स्नान के लिए प्रबंध किया है। लेकिन संगत बहुत आ गई। इनके नहाने की तो बात बन नहीं पाएगी। पीने का पानी पर्याप्त मात्रा में बाहर से मंगवा रखा है।।



     कबीर साहेब ने कहा कि यह नदी देखें कहाँ पर है? उस नदी पर जा कर साहेब ने हाथ से ऐसे इशारा किया था जैसे यातायात (ट्रैफिक) का सिपाही रूकी हुई गाड़ियों को जाने का संकेत करता है। वह आमी नदी पानी से पूरी भरकर चल पड़ी। "बोलो सतगुरु देव की जय" "सत साहेब"। (यह आमी नदी वहाँ पर अभी भी विद्यमान है) सब ने जय जयकार की। *

 कबीर साहेब ने कहा कि दो चादर लेकर आओ एक चद्दर नीचे बिछाओ। और एक मैं ऊपर ओढूँगा। (क्योंकि वे जानी जान तो थे) कहने लगे कि ये सेना कैसे ला रखी है तुमने? अब बिजली खां पठान और बीर सिंह बघेल आमने-सामने खड़े हैं। उन्होंने तो मुँह लटका लिया और बोले नहीं। ये दूसरे हिन्दू और मुसलमान बिना नाम वाले बोले कि जी हम आपका अंतिम संस्कार अपनी विधि से करेंगे। दूसरे कहते हैं कि हम अपनी विधि से करेंगे। चढ़ ली बाहे, उठा लिए हथियार तथा कहने लगे कि आ जाओ। कबीर साहेब ने कहा कि नादानों क्या मैंने यही शिक्षा दी थी 120 वर्ष तक। इस मिट्टी का तुम क्या करोगे? चाहे फूंक दो या गाड़ दो, इससे क्या मिलेगा? तुमने क्या शिक्षा ली मेरे से? सुन लो यदि झगड़ा कर लिया तो मेरे से बुरा नहीं होगा। वे जानते थे कि ये कबीर साहेब परम शक्ति युक्त हैं। यदि कुछ कह दिया तो बात बिगड़ जाएगी। शांत हो गये पर मन में यही थी कि शरीर छोड़ने दो, हमने तो यही करना है। वे तो जानी जान थे। उस दिन गृहयुद्ध शुरू हो जाता, सत्यानाश हो जाता. यदि साहेब अपनी कृपा न बक्शते। कबीर साहेब ने कहा कि एक काम कर लेना तुम मेरे शरीर को आधा-आधा काट लेना। परन्तु लड़ना मत। ये मेरा अंतिम आदेश सुन लो और मानो, इसमें जो वस्तु मिले उसको आधा आधा कर लेना। महिना माघ शुक्ल पक्ष तिथि एकादशी वि. स. 1575 (एक हजार पाँच सौ पचहत्तर) सन् 1518 को कबीर साहेब ने एक चद्दर नीचे बिछाई और एक ऊपर ओढ़ ली। कुछ फूल कबीर साहेब के नीचे वाली चद्दर पर दो इंच मोटाई में विछा दिये। थोड़ी सी देर में आकाश वाणी हुई कि मैं तो जा रहा हूँ सतलोक में (स्वर्ग से भी ऊपर)। देख लो चद्दर उठा कर इसमें कोई शक नहीं है। जो वस्तु है ये आधी -आधी ले लेना परन्तु लड़ना नहीं। जब चद्दर उठाई तो सुगंधित फूलों का ढेर शव के समान ऊँचा मिला। बोलो सतगुरू देव की जय "सत साहेब।‌।

और


वीर देव सिंह बघेल और बिजली खाँ पठान एक दूसरे के सीने से लग कर ऐसे रोने लगे जैसे कि बच्चों की माँ मर जाती है। फिर तो वहाँ पर रूदन मच गया। हिन्दू और मुसलमानों का प्यार सदा के लिए अटूट बन गया। एक दूसरे को सीने से लगा कर हिन्दू और                 ‌ मुसलमान रो रहे थे।

 कहने लगे कि हम समझे नहीं। ये तो वास्तव में अल्लाह आए हुए थे। और ऊपर आकाश में प्रकाश का गोला जा रहा था। बोलो सतगुरू देव की जय "सत साहेब। 

तो वहाँ मगहर में दोनों धर्मों(हिन्दुओं तथा मुसलमानों) ने एक-एक चद्दर तथा आधे-आधे सुगंधित फूल लेकर सौ फूट के अंतर पर एक-एक यादगार भिन्न-भिन्न बनाई जो आज भी विद्यमान है 

तथा कुछ फूल लाकर कांशी में जहाँ कबीर साहेब एक चबूतरे (चौरा) पर बैठकर सतसंग किया करते वहाँ काशी चौरा नाम से यादगार बनाई। अब वहाँ पर बहुत बड़ा आश्रम बना हुआ है मगहर में दोनों यादगारों के बीच में एक साझला द्वार भी है आपस में कोई भेद-भाव नही है।

 मगहर स्थान पर हिंदुओं तथा मुसलमानों द्वारा बनाई गई साथ-2 यादगार

       मगहर स्थान पर हिन्दू और मुसलमान ऐसे रहते हैं कि जैसे माँ जाय भाई रहा करते हैं। उनसे हमने बात की थी तो उन्होंने कहा कि हमारी आज तक धर्म के नाम पर कोई लड़ाई नहीं हुई। वैसे कहा सुनी तो घर के घर में हो जाती है। फिर भी हमारी आपस में धर्म के नाम पर लड़ाई नहीं होती है। बिजली खाँ पठान ने दोनों यादगारों के नाम पाँच सौ, पाँच सौ बीघा जमीन दी जिसमें हिन्दू तथा मुसलमान अपने प्रबन्धक कमेटी बनाकर व्यवस्थित किए हैं। यह दास (संत रामपाल दास जी महाराज) अपने सैंकड़ों सेवकों सहित तीन बार इस एतिहासिक धार्मिक स्थल को देखकर आ चुके हैं। वहाँ जाकर ऐसा लगता है जैसे हमने सच्चाई का खजाना प्राप्त हो गया हो। बोलो सतगुरू देव की जय "सत साहेब।।

कबीर साहेब का संक्षिप्त जीवन परिचय

क्यों आवश्यक है भक्ति करना?

vedon ke anusar Kaun hai Puran Parmatma

Bodh Diwas

Parmatma ka sanvidhan

satguru.sewa.aur.bandagi

सृष्टि रचना Srishti Rachna

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संत रामपाल जी महाराज के समर्थन में भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियाँ"

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