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क्यों आवश्यक है भक्ति करना?

क्यों आवश्यक है भक्ति करना?

 मानुष जन्म पाए कर जो नहीं रटे हरि नाम।

जैसे कुआं जल बिना बनवाए क्या काम।।

  मानव जन्म प्राप्त करके जो व्यक्ति शुभ कर्म नहीं करता तो उसका भविष्य नरक बन जाता है

 जो व्यक्ति पूर्व जन्म के पुण्यकर्मों वाले हैं, उनको इस जन्म में उन शुभ कर्मों के प्रतिफल में अच्छी नौकरी मिली है या अच्छा कारोबार है। यदि वर्तमान में शुभ कर्म, भक्ति व दान-धर्म नहीं करोगे तो भविष्य के जन्मों में गधा-कुत्ता, सूअर-बैल बनकर धक्के व गंद खाओगे ।जैसे मानव (स्त्री/पुरूष) जीवन में पूर्व के शुभ कर्म अनुसार अच्छा भोजन मिला है। 


गरीब, नर सेती तू पशुवा कीजै, गधा बैल बनाई। छप्पन भोग कहाँ मन बोरे, कुरड़ी चरने जाई ।।


भावार्थ :- मानव शरीर छूट जाने के पश्चात् भक्ति हीन तथा शुभकर्म हीन होकर जीव अनेकों पशु पक्षियों की गधे-बैल आदि-आदि की योनियों (शरीरों) को प्राप्त करेगा फिर मानव शरीर वाला आहार नहीं मिलेगा। गधा बनकर कुरड़ी (कूड़े के ढ़ेर) पर गंद खाएगा। बैल बनकर रस्से से बँधा रहेगा। न प्यास लगने पर पानी पी सकेगा, न भूख लगने पर खाना खा सकेगा। मक्खी-मच्छर से बचने के लिए एक दुम होगी। उसको कूलर समझना, पंखा या मच्छरदानी समझना। जिन प्राणियों के अधिक पापकर्म होते हैं, पशु जीवन में उनकी दुम भी कट जाती है।


एक बैल के पिछले पैर के खुर के बीच में लगभग 1½ इंच बड़ी कील लग गई। चलने से और अधिक अंदर चली गई। बैल पैर से लंग करने लगा किसान नस पर नस चढ़ गई होगी, कई बार ऐसा होता है कि नस पर नस चढ़ जाती तो बैल चलते-चलते ठीक हो जाता था परंतु अबकी बार ऐसा नहीं हुआ।बैल हल में चला। घर तक आया तो घर पर आते ही बैठ गया। चारा भी नहीं चरा। आँखों से आँसू निकल रहे थे क्योंकि दर्द अधिक था। सुबह बैल उठा ही नहीं, लेट गया पैर पर सोजन अधिक थी। गाँव से पशुओं का डॉक्टर बुलाया। पुराने समय की बात है। उस समय ऐसा ही इलाज होता था। डॉक्टर ने देखकर बताया कि इसके घुटने में बाय है। पुराने गुड़ को कूटकर नर्म करके पट्टी बाँध दो, ठीक हो जाएगा कील लगी थी खुर में (पैर के नीचे वाले हिस्से में), उपचार हो रहा था घुटने का। लगभग एक महीने ऐसा चला। एक दिन घर के अन्य आदमी ने देखा कि बैल के पैर के तलवे (खुर के बीच) से मवाद निकल रहा है। उसको साफ किया तो पाया कि कील लगी है। किसी औजार से कील निकाली। तब एक सप्ताह में बैल ठीक हो गया। पेटभर चारा खाया-पानी पीया।

विचार करें :- जब यह प्राणी मानव शरीर में था तो उसने स्वपन में भी नहीं सोचा था कि एक दिन मैं बैल भी बन जाऊँगा । अब बोलकर भी नहीं बता पा रहा था कि दर्द कहाँ पर है? कबीर जी ने कहा है कि :-

कबीर, 

 जिव्हा तो वोहे भली, जो रटै हरिनाम।

 ना तो काट के फैंक दियो, मुख में भलो ना चाम।।      


       ‌भावार्थ :- जैसे जीभ शरीर का बहुत महत्वपूर्ण अंग है। यदि परमात्मा का गुणगान तथा नाम-जाप के लिए प्रयोग नहीं किया जाता है तो व्यर्थ है क्योंकि इस जुबान से कोई किसी को कुवचन बोलकर बद्दुवा देती है किसी की निंदा करनी, झूठी गवाही देकर या, किसी को व्यापार में झूठ बोलकर ठगकर अनेकों पाप मानव अपनी जीभ से करता है। परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि यदि जीभ का सदुपयोग नहीं करता है यानि शुभ वचन-शीतल वाणी, परमात्मा का गुणगान की चर्चा करना, धार्मिक सद्ग्रन्थों का पठन-पाठन तथा भगवान के नाम पर जाप-स्मरण जीभ से नहीं कर रहा है तो इसे काटकर फैंक दो। यह केवल पाप इकट्ठे कर रहा है।

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