निश्चित दिन को राजा हजारों सैनिक लेकर सपरिवार साढू ऋषि जी की कुटी पर पहुँच गया। ऋषि जी ने स्वर्ग लोक के राजा इन्द्र से निवेदन करके एक कामधेनु (सर्व कामना यानि इच्छा पूर्ति करने वाली गाय, जिसकी उपस्थिति में खाने की किसी पदार्थ की कामना करने से मिल जाता है, यह पौराणिक मान्यता है।) माँगी। उसके बदले में ऋषि जी ने अपने पुण्य कर्म संकल्प किए थे। इन्द्र देव ने एक कामधेनु तथा एक लम्बा-चौड़ा तम्बू (Tent) भेजा और कुछ सेवादार भी भेजे। टैण्ट के अंदर गाय को छोड़ दिया। ऋषि परिवार ने गऊ माता की आरती उतारी। अपनी मनोकामना बताई। उसी समय छप्पन (56) प्रकार के भोग चांदी की परातों, टोकनियों, कड़ाहों में स्वर्ग से आए और टैण्ट में रखे जाने लगे। लड्डू, जलेबी, कचौरी, दही बड़े, हलवा, खीर, दाल, रोटी (मांडे) तथा पूरी, बुंदी, बर्फी, रसगुल्ले आदि-आदि से आधा एकड़ का टैण्ट भर गया। ऋषि जी ने राजा से कहा कि भोजन जीमो। राजा ने बेइज्जती करने के लिए कहा कि मेरी सेना भी साथ में भोजन खाएगी। घोड़ों को भी चारा खिलाना है। ऋषि जी ने कहा कि प्रभु कपा से सब व्यवस्था हो जाएगी। पहले आप तथा सेना भोजन करें। राजा उठकर भोजन करने वाले स्थान पर गया। वहाँ सुंदर कपड़े बिछे थे। राजा देखकर आश्चर्यचकित रह गया। फिर चांदी की थालियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के भोजन ला-लाकर सेवादार रखने लगे। अन्नदेव की स्तुति करके ऋषि जी ने भोजन करने की प्रार्थना की। राजा ने देखा कि इसके सामने तो मेरा भोजन-भण्डारा कुछ भई नहीं था। मैंने तो केवल ऋषि-परिवार को ही भोजन कराया था वह भी तीन-चार = पदार्थ बनाए थे। राजा शर्म के मारे पानी-पानी हो गया खाना खाते वक्त बहुत परेशान था। ईर्ष्या की आग धधकने लगी बेइज्जती मान ली। सर्व सैनिक खाऐं और सराहें। राजा का रक्त जल रहा था। अपने टैण्ट में जाकर ऋषि को बुलाया और पूछा कि यह भोजन जंगल में कैसे बनाया? न कोई कड़ाही चल रही है, न कोई चुल्हा जल रहा है। ऋषि जी ने बताया कि मैंने अपने पुण्य तथा भक्ति के बदले स्वर्ग से एक गाय उधारी माँगी है । उस गाय में विशेषता है कि हम जितना भोजन चाहें, तुरंत उपलब्ध करा देती है। राजा ने कहा कि मेरे सामने उपलब्ध कराओ तो मुझे विश्वास हो। ऋषि तथा राजा टैण्ट के द्वार पर खड़े हो गए। अन्दर केवल गाय खड़ी थी। द्वार की ओर मुख था। टैण्ट खाली था क्योंकि सबने भोजन खा लिया था। शेष बचा सामान तथा सेवक ले जा चुके थे। गाय को ऋषि जी की अनुमति का इंतजार था। राजा ने कहा कि ऋषि जी! यह गाय मुझे दे दो। मेरे पास बहुत बड़ी सेना है। उसका भोजन इससे बनवा लूंगा तेरे किस काम की है? ऋषि ने कहा, राजन! मैंने यह गऊ माता उधारी ले रखी है। स्वर्ग से मँगवाई है। मैं इसका मालिक नहीं मैं आपको नहीं दे सकता। राजा ने दूर खड़े सैनिकों से कहा कि इस गाय को ले चलो। ऋषि ने देखा कि साढू की नीयत में खोट आ गया है। उसी समय ऋषि जी ने गऊ माता से कहा कि गऊ माता! आप अपने लोक अपने धनी स्वर्गराज इन्द्र के पास शीघ्र लौट जाएं। उसी समय कामधेनु टैण्ट को फाड़कर सीधी ऊपर को उड़ चली। राजा ने गाय को गिराने के लिए गाय के पैर में तीर मारा। गाय के पैर से खून बहने लगा और पथ्वी पर गिरने लगा। गाय घायल अवस्था में स्वर्ग में चली गई। जहाँ-जहाँ गाय का रक्त गिरा था, वहीं-वहीं तम्बाकू उग गया। फिर बीज बनकर अनेकों पौधे बनने लगे।
संत गरीबदास जी ने कहा है कि :-
तमा + खू = तमाखू।
खू =नाम= खून =का तमा= नाम =गाय।
सौ बार सौगंध इसे न पीयें-खाय ।।
भावार्थ :- भावार्थ है कि फारसी भाषा में "तमा" गाय को कहते हैं। खू = खून यानि रक्त को कहते हैं। यह तमाखू गाय के रक्त से उपजा है। इसके ऊपर गाय के बाल जैसे रूंग (रोम) जैसे होते हैं। हे मानव! तेरे को सौ बार सौगंध है कि इस तमाखू का सेवन किसी रूप में भी मत कर। तमाखू का सेवन गाय का खून पीने के समान पाप लगता है।
मुसलमान धर्म के व्यक्तियों को हिन्दुओं से पता चला कि तमाखू की उत्पत्ति ऐसे हुई है। उन्होंने गाय का खून समझकर खाना तथा हुक्के में पीना शुरू कर दिया क्योंकि गलत ज्ञान के आधार से मुसलमान भाई गाय के माँस को खाना धर्म का प्रसाद मानते हैं। वास्तव में हजरत मुहम्मद जो मुसलमान धर्म के प्रवर्तक माने जाते हैं, उन्होंने कभी-भी जीव का माँस नहीं खाया था ।
गरीब, नबी मुहम्मद नमस्कार है, राम रसूल कहाया।
एक लाख अस्सी कू सौगंध, जिन नहीं करद चलाया ।।
गरीब, अर्स कुर्श पर अल्लह तख्त है, खालिक बिन नहीं खाली।
वै पैगंबर पाक पुरूष थे, साहेब के अबदाली।।
भावार्थ :- नबी मुहम्मद तो आदरणीय महापुरूष थे जो परमात्मा संदेशवाहक थे। ऐसे-ऐसे एक लाख अस्सी हजार पैगंबर मुसलमान धर्म में (बा आदम से लेकर मुहम्मद तक) माने गए हैं। वे सब पाक ( पवित्र) व्यक्ति थे जिन्होंने कभी किसी पशु-पक्षी पर करद यानि तलवार नहीं चलाई। वे तो परमात्मा से डरने वाले थे। परमात्मा के कपा पात्र थे बाद में कुछ मुल्ला-काजियों ने मॉस खाने की परम्परा शुरू कर दी जो आगे चलकर धार्मिकता का अपवाद ( बिगड़ा रूप ) बन गई। उसी आधार से सर्व मुसलमान भाई पाप को खा रहे हैं।
फिर भ्रमित मुसलमानों ने तम्बाकू का सेवन (खाना, हुक्का बनाकर पीना ) प्रारम्भ कर दिया। भोले हिन्दु धर्म के व्यक्तियों ने उनकी चाल नहीं समझी। उनके कहने से तमाखू का सेवन जोर-शोर से शुरू कर दिया। वर्तमान में तो यह पंचायत का प्याला बन गया है जो भारी भूल है। अज्ञानता का पर्दा है। इसे भूलकर भी सेवन नहीं करना चाहिए। संत गरीबदास जी ने फिर बताया है कि हे भक्त हरलाल जी! और सुन तमाखू सेवन के पाप :-
गरीब, परद्वारा स्त्री का खोलै। सत्तर जन्म अंधा हो डोलै।।। मदिरा पीवै कड़वा पानी। सत्तर जन्म श्वान के जानी।|2
मांस आहारी मानवा, प्रत्यक्ष राक्षस जान। मुख देखो न तास का, वो फिरै चौरासी खान।।3 सुरापान मद्य मांसाहारी। गमन करै भोगै पर नारी।।4 सत्तर जन्म कटत है शीशं। साक्षी साहेब है जगदीशं। 15
सौ नारी जारी करै, सुरापान सौ बार।
एक चिलम हुक्का भरै, डूबै काली धार ।।
हुक्का हरदम पीवते, लाल मिलांवे धूर । इसमें संशय है नहीं, जन्म पीछले सूअर ।।
उपरोक्त वाणियों का भावार्थ :-
वाणी सँख्या 1 में कहा है कि जो व्यक्ति अन्य स्त्री से अवैध सम्बन्ध बनाता है, उस पाप के कारण वह सत्तर जन्म अंधे के प्राप्त करता है । अंधा गधा गधी, अंधा बैल, अंधा मनुष्य या अंधी स्त्री के लगातार सत्तर जन्मों में कष्ट भोगता है। वाणी सँख्या 2 :- कड़वी शराब रूपी पानी जो पीता है, वह उस पाप के कारण सत्तर जन्म तक कुत्ते के जन्म प्राप्त करके कष्ट उठाता है।
गंदी नालियों का पानी पीता है। रोटी ने मिलने पर गुह (टट्टी) खाता है। वाणी सँख्या 3 :- जो व्यक्ति माँस खाते हैं, वे तो स्पष्ट राक्षस हैं। उनका मुख भी नहीं देखना चाहिए यानि उनके साथ रहने से अन्य भी माँस खाने का तो आदी हो सकता है। इसलिए उनसे बचें। वह तो चौरासी लाख योनियों में भटकेगा वाणी सँख्या 4-5 :- (सुरा) शराब ( पान ) पीने वाले तथा परस्त्री को भोगने वाले, माँस खाने वालों को अन्य पाप कर्म भी भोगना होता है। उनके सत्तर जन्म तक मानव या बकरा-बकरी, भैंस या मुर्गे आदि के जीवनों में सिर कटते हैं। इस बात को मैं परमात्मा को साक्षी रखकर कह रहा हूँ, सत्य मानना।
वाणी सँख्या 6 :- एक चिलम भरकर हुक्का पीने वाले को देने से भरने वाले को जो पाप लगता है, वह सुनो। एक बार परस्त्री गमन करने वाला, एक बार शराब पीने वाला, एक बार माँस खाने वाला पाप के कारण उपरोक्न कभगना है। सौ स्त्रियों से भोग करे और सौ बार शराब पीऐ , उसे जो प पाप एक चिलम भरकर हुक्का पीने वाले को देने वाले को लगता तम्बाकू सेवन (हुक्के में, बीड़ी-सिगरेट में पीने वाले, खाने वाले) करने वाले को कितना पाप लगेगा? इसलिए उपरोक्त सर्व पदार्थों का सेवन कभी न करो।
वाणी सँख्या 7 :- समाज के व्यक्तियों को देखकर कुछ व्यक्ति हुक्का या अन्य नशीली वस्तुएं सेवन करने लग जाते हैं। यदि सत्संग सुनकर बुराई त्याग देते हैं तो वे जीव पिछले जन्म में भी मनुष्य थे। उनके अंदर नशे की गहरी लत नहीं बनती। परंतु जो बार-बार सत्संग सुनकर भी तम्बाकू आदि नशे का त्याग नहीं कर पाते, वे पिछले जन्म में सूअर के शरीर में थे। सूअर के शरीर में बदबू (Bad Smell ) सूंघने से तम्बाकू की बदबू पीने-सूंघने की गहरी आदत होती है। वे शीघ्र हुक्का व अन्य नशा नहीं त्याग पाते। वे अपने अनमोल मानव शरीर रूपी लाल को मिट्टी में मिला रहे हैं। उनको अधिक सत्संग सुनने की राय दी जाती है। निराश न हों। सच्चे मन से परमात्मा कबीर जी से नशा छुड़वाने की पुकार प्रार्थना करने से सब नशा छूट जाता है।
"तम्बाकू के विषय में अन्य विचार"
तम्बाकू यानि हुक्का पीने वालों की स्थिति बताई है :-
(संत गरीबदास जी के ग्रन्थ में 'अथ तमाखू की बैत' नामक अध्याय में)
पित बाई खांसी निबासी निबास । कफ दल कलेजा लिया है गिरास ।।
काला तमाखू अरू गोरा पिवाक । दस बीस लंगर जहाँ बैठे गुटाक।।
बाजे नै गुड़ गुड़ अरू हुक्के हजूम। कोरे कुबुद्धि बीसा हैं न सूम।।
बांकी पगड़ी अरू बांकी ही नै खुद डूबै अरू डुबोए है कै। गुटाकड़ अटाकड़ मटाकड़ लहूर। एक बेठैगा अड़कर एक बेठैगा दूर।।
पीवै तमाखू पड़ कर्म मार। अमली के मुख में मुत्र की धार ।।
कड़वा ही कड़वा तू करता हमेश। कड़वा ही ले प्यारे कड़वा ही पेश ।।
कामी क्रोधी तूं लोभी लबूट । बचन मान मेरा धूमा न घूंट।।
हुक्का हरामी गुलामी गुलाम। धनी के सरे में न पहुँचे अलाम।।
पामर परम धाम जाते न कोई। झूठे अमल पर दई जान खोई।।
मुरदा मजावर हरामी हराम। पीवै तमाखू इन्द्री के गुलाम।।
अज्ञान नींद न सो उठ जाग, पीवै तमाखू गए फुटि भाग।।
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