संत (गुरु) रविदास जी का जन्म माघ पूर्णिमा 1433 वि.स. को ( चमार) चर्मकार जाति में बनारस के समीप गाँव में हुआ था। बनारस उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है। भारत की भूमि पर अनंत काल से अनेकों महापुरुषों संत ऋषियों ने जन्म लिया है इन संतो महापुरुषों ऋषियों ने अनेकों प्रकार के समाज सुधार कार्य किए।सभी की अपनी अलग अलग पहचान है। इस कड़ी में संत रविदास जी महाराज भी एक हैं जो किसी के परिचय के मोहताज नहीं है जन्म तिथि को लेकर विद्वानों में मतभेद है परंतु परंपरागत अनुश्रुति और रविदासियों में मान्यता प्राप्त संत कर्मदास जी का दोहा प्रचलित है ---+++++
चौदह सौ तैंतीस की, माघ सुदी पंदरास।
दुखियों के कल्याण हित, प्रगटे श्री रविदास॥
संत रविदास जी की माता जी का नाम कलसा देवी और पिता का नाम संतोष दास था । चर्मकार जाति में अवतरित रविदास जी ने अपने चमार होने का वर्णन निःसंकोच बार बार किया है:-
कहै रविदास खलास चमारा।
जो हम सहरी सो मीत हमारा।।
संत रविदास जी द्वारा सामाज में फैली कुरीतियां का पुरजोर विरोध:-
संत रविदास जी ने वर्ण व्यवस्था, छुआछूत, जातपात, के विरोध में स्वर प्रखर किया।संत रविदास जी ने ब्राह्मणवाद, मनुवाद का विरोध किया और उन्होंने पूर्ण परमात्मा की वास्तविक साधना विधि को आत्मसात किया था, उन्हें परमेश्वर के बारे में पूर्ण ज्ञान था लेकिन दुर्भाग्य आज का दलित समाज नास्तिकता की ओर जा रहा है!
रैदास एक ही बूंद से, भयो जगत विस्तार ।
ऊँच नींच केहि विधि भये, ब्राह्मण और चमार॥
संत रविदास जी का माता गंगा को एक ब्राह्मण द्वारा कौडी भेजना;-
एक समय की बात है संत रविदास जी महाराज को एक ब्राह्मण ने अपने जूते गठवाने के बदले एक कौड़ी दे दिया और नीच जाति का समझकर व्यंग करते हुए कहा कि चलो रविदास गंगा स्नान के लिए चलते हैं क्योंकि उस समय उनको अछूत माना जाता था और अछूतो का गंगा स्नान बन्द कर रखा था।
मन चंगा तो कठौती में गंगा:---
रविदास जी ने कहा कि मन चंगा तो कठौती में गंगा और प्रार्थना की कि आप मेरी एक ये कौड़ी ले जाइए और माता गंगा को दे देना और साथ में यह भी कहा कि माता गंगे को बोलना कि हे माता गंगे यह संत रविदास जी की कौड़ी है उन्होंने आपके लिए भेजी है। अगर माता गंगा अपना हाथ बाहर निकालकर कौड़ी नहीं लें तो आप यह कौड़ी वापस लेकर आ जाइएगा। ब्राह्मण ने सोचा कि चलो देखते हैं यह रविदास कितना बढ़ा चमत्कारी है और कौड़ी लेकर गंगा स्नान के लिए चला गया
गंगा माता द्वारा संत रविदास जी को सोने के कंगन भेजना:---
ब्राह्मण स्नान स्थल पर पहुंचा और स्नान करने के बाद संत रविदास जी के बताए अनुसार हाथ में कौड़ी लेकर बोला कि हे माता गंगे! यह संत रविदास जी की कौड़ी है उन्होंने आपके लिए भेजी है। इतना सुनते ही माता गंगा अपने दोनों हाथ बाहर निकालकर ब्राह्मण से बोली कि आज मैं धन्य हो गयी जो एक महापुरुष ने मेरे लिए कौड़ी भेजी है और अपने दूसरे हाथ से एक सोने का कंगन देते हुए बोली कि उस पूजनीय आदरणीय संत रविदास जी को यह सोने का कंगन दे देना और कहना कि उनकी कौड़ी पाकर मैं धन्य हो गयी।
लालची ब्राह्मण द्वारा कंगन राजा को देना:--
यह सब देखने के बाद ब्राह्मण आश्चर्य में पड़ गया कि एक नीच की कौड़ी के लिए माता गंगा ने अपने दोनों हाथ फैलाए। परंतु माता गंगा के दिए सोने के कंगन (जो कि बहुत ही सुंदर था) से आकर्षित होकर ब्राह्मण ने सोचा कि क्यों ना मैं इसे राजा को दे दूं इसके बदले मुझे राजा से धन मिल सकता है यह सोचकर ब्राह्मण ने राजमहल में जाकर राजा को वह कंगन दे दिया। राजा ने अपनी रानी को वह कंगन भिजवा दिया। रानी ने आदेश दिया कि इसी तरह का 15 दिनों के अंदर एक और कंगन चाहिए।
रानी का आदेश ब्राह्मण तक पहुंचा, राजा ने ब्राह्मण से कहा कि ऐसा एक और सोने का कंगन ला देना, आपको मुंह मांगी कीमत दे दी जाएगी और अगर 15 दिनों के अंदर में नहीं ला पाया तो आपको परिवार सहित सूली पर चढ़ा दिया जाएगा। ब्राह्मण 10 दिनों तक इधर-उधर सभी सुनारों के पास जाकर घूमता रहा परंतु किसी भी सुनार से वह कंगन नहीं बन पाया। ब्राह्मण शोक में डूब गया और 14वें दिन घर आकर अपनी ब्राह्मणी को अपनी आप बीती बतायी।
ब्राह्मणी ने कहा कि अपना अभिमान त्याग कर संत रविदास जी के पास जाइए और उनसे माफी मांग कर इस समस्या का समाधान बताने को कहिए। ब्राह्मण अपनी पत्नी की बात मानकर संत रविदास जी के पास गया और चरणों में गिर गया और अपनी सारी आपबीती बतायी। संत रविदास जी ने ब्राह्मण को अपने चरणों से उठाकर बिठाया और कहा कि ब्राह्मण जी इस दुनिया में कोई नीच या उच्च नहीं है परमात्मा ने सबको एक बनाया है और ब्राह्मण को अपने चाम धोने वाले बर्तन में हाथ डालकर एक कंगन निकालने को कहा। उसमें बहुत सारे वैसे ही कंगन थे।
ब्राह्मण जी ने एक कंगन बाहर निकाला। उन्होंने वह कंगन रानी को ले जा कर दे दिया। रानी को पता था कि इस कंगन के पीछे कोई न कोई राज है तो उन्होंने ब्राह्मण से पूछा कि मुझे उस सुनार का नाम बताओ जिसके पास से आपने यह कंगन बनवाए हैं ताकि भविष्य में अगर मुझे कंगन बनवाना होगा तो मैं उसी के पास से कंगन बनवाऊं। ब्राह्मण ने मौत की सजा से घबराते हुए अपनी सारी आपबीती रानी को भी बतायी। रानी ने संत रविदास के चमत्कारों से प्रभावित होकर संत रविदास जी से नाम दीक्षा ली व सत भक्ति करने लगी।
संत रविदास जी महाराज के द्वारा 700 ब्राह्मणों को शरण में लेना,:--
रानी संत रविदास जी महाराज की शिष्या हो गई। उसके बाद रानी ने एक दिन 700 ब्राह्मणों को भोजन भंडारा के लिए आमंत्रित किया। साथ में अपने गुरु जी संत रविदास जी को भी आमंत्रित किया। भोजन भंडारे में 700 ब्राह्मण आए हुए थे तो उन्होंने देखा कि हमारे साथ में एक नीच जाति के संत रविदास जी बैठे हुए हैं जो कि हमारे सम्मान के विरुद्ध है, तो उन्होंने रानी से कहा कि जब तक यहां रविदास हमारे साथ बैठा है हम भोजन नहीं करेंगे। यह नीच जाति का व्यक्ति हैं। इसको बाहर निकालो।
चप्पलों (खड़ाऊ) में बैठकर लीला करना:--
रानी ने गुरु का अपमान सुनते ही कहा कि आप को भोजन भंडारा करना है तो करो वरना चले जाओ। मैं अपने गुरु जी को नहीं भेज सकती क्योंकि गुरुजी भगवान होते हैं। यह सुनते ही संत रविदास जी ने कहा कि ब्राह्मणों का ऐसे अपमान नहीं करते बेटी। मैं नीच जाति का हूं। मेरा स्थान इनके चप्पलों पर है। इतना कहने के बाद संत रविदास जी महाराज उनके चप्पल रखने के स्थान पर जाकर बैठ कर भोजन भंडारा करने लगा।
सभी ब्राह्मण अपना भोजन करने लगे। उन्होंने यह चमत्कार देखा कि सभी के साथ बैठकर संत रविदास जी भोजन कर रहे हैं। वे सभी एक दूसरे को कहने लगे कि तुम नीच व्यक्ति के साथ भोजन कर रहे हो, तुम अछूत हो गए हो। यह सब सुनने के बाद संत रविदास जी ने कहा कि क्यों मुझ पर लांछन लगाते हो ब्राह्मणों मैं तो आपके चप्पलों के स्थान पर बैठा हूं। यह सब देखने के बाद सभी ब्राह्मण आश्चर्य में पड़ गए। संत रविदास जी महाराज ने कहा कि आप लोग तो सूत की जनेऊ पहनते हो और मैं सोने का।
संत रविदास ने शरीर से सोने का जनेऊ निकाल कर दिखाना:-
संत रविदास जी ने अपने शरीर में (खाल के अंदर) सोने का जनेऊ दिखाया और कहा कि वास्तव में संत वह है जिनके पास वास्तविक नाम का जनेऊ हो। इतना सुनते ही सभी ब्राह्मणों ने अपना सिर झुका दिया और सभी ने हाथ जोड़कर संत रविदास जी महाराज से माफी मांगा। संत रविदास जी महाराज ने परमात्मा की अमर वाणी से सत्संग किया। उस चमत्कार और सत्संग से प्रभावित होकर 700 ब्राह्मणों ने संत रविदास जी को गुरु बना कर उनसे नाम दीक्षा ली और अपना कल्याण करवाया।
इस संदर्भ में संत गरीबदास जी महाराज कहते हैं कि अन्य भक्ति करने वाले ब्राह्मण पेट के भरने के नियोजन से आडंबर बनाकर घर घर घूमा करते हैं जबकि सतभक्ति करने वाले संत रविदास ने तो सोने का जनेऊ अपने शरीर से निकालकर दिखा दिया है।
गरीब, द्वादश तिलक बनाये कर, नाचै घर घर जाय कर।
कंनक जनेयू काड्या, सत रविदास चमार।।
रैदास ब्राह्मण मत पूजिये, जो होवै गुणहीन ।
पूजिय चरन चंडाल के, जो हौवे गुन परवीन ॥
संत रविदास जी ने मीराबाई को शिष्या बनना सतभक्ति प्रदान करना:-
राजस्थान के चित्तौड़ की राजपूत घराने की रानी मीराबाई जी ने संत रविदास जी को अपना गुरु बनाया । संत रविदास जी से नाम उपदेश लेकर कृष्ण भक्ति छोड़ सतभक्ति ग्रहण कर पूर्ण मोक्ष प्राप्त किया । सतभक्ति में मस्त मीरा कहती हैं
गुरु रैदास ने सतज्ञान भक्ति प्रदान की है अब मैं उनकी शरण में रहूँगी:-
गुरु मिलिया रैदास जी, दीनहई ज्ञान की गुटकी ।
परम गुरां के सारण मैं रहस्यां, परणाम करां लुटकी॥
यों मन मेरो बड़ों हरामी, ज़्यूं मदमातों हाथी।
सतगुरु हाथ धरौ सिर ऊपर, आंकुस दै समझाती॥
श्ररविदास जी के गुरू कौन थे, और उनको वास्तविक मंत्र और भक्ति विधि कैसे प्राप्त हुई?
लोग हमेशा यह जानने के लिए उत्सुक रहते है की आखिर संत गुरु रविदास जी के गुरु कौन थे? लोगो के बीच अनेको भ्रांतियां फैली हुई है. लोगो की मान्यताओं के अनुसार लोग गुरु नानक जी को संत रविदास जी का गुरु मानते है. परन्तु सच्चाई यह है की संत रविदास जी के गुरु पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब जी थे. यह सर्व विदित है कि ---
ज्ञकबीर साहेब ने स्वामी रामानंद जी को सतज्ञान से परिचित कराया था और सतलोक की यात्रा भी कराई थी । कबीर साहेब ने संत रविदास जी को भी सतज्ञान के तत्व भेद से परिचित कराया । संत रविदास जी को पूर्ण विश्वास हुआ कि कबीर साहेब ही पूर्ण परमात्मा है । सांकेतिक प्रमाण उनकी इस वाणी में है :-
रामानंद मोहि गुरु मिल्यौ, पाया ब्रह्म विसास ।
रामनाम अमी रस पियौ, रविदास हि भयौ षलास ॥
■ गरीबदास जी महाराज भी कबीर साहेब रविदास और मीराबाई के संबंध बड़े जोरदार तरीके से कहते हैं :-
गरीब, रैदास खवास कबीर का, जुगन जुगन सतसंग ।
मीरां का मुजरा हुआ, चढ़त नवेला रंग ।।
संत रविदास जी ने आन उपासना से भी मना किया
संत रविदास जी ने पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब के अतिरिक्त किसी अन्य देवी देवता की पूजा करने से मना किया है और कहा कि ऐसा करने वाले नरक में जाते हैं:-
हरि सा हीरा छाड़ कै, करै आन की आस ।
ते नर दोजख जाएंगे, सत्य भाखै रविदास ।।
संत रविदास नाम की महिमा बताते हुए कहते हैं जब सुरत शब्द से मिलकर एकाकार हो जाती है परम आनंद की प्राप्ति होती है । उस समय अंतर में ज्ञान दीपक प्रज्वलित होता है और घट में ब्रह्मानन्द की अनुभूति होती है। सब प्रकार के प्राणायाम छूट जाते है:-
सुरत शब्द जऊ एक हों, तऊ पाइहिं परम अनंद।
रविदास अंतर दीपक जरई, घट उपजई ब्रह्म अनंद॥
इड़ा पिंगला सुसुम्णा, बिध चक्र प्रणयाम।
रविदास हौं सबहि छाँड़ियों, जबहि पाइहु सत्तनाम॥
संत रविदास जी ने जिस पूर्ण परमात्मा की भक्ति की और जिन वास्तविक मंत्रों का उन्होंने जाप किया वही वास्तविक सतभक्ति बंदीछोड़ परमेश्वर कबीर साहेब और गरीबदास जी महाराज की गुरु शिष्य प्रणाली में वर्तमान में इस ब्रह्मांड में एकमात्र तत्वदर्शी संत जगतगुरु रामपाल जी महाराज दे रहे हैं।
संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें औरअपना कल्याण करवाऐ।
0 Comments