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सृष्टि रचना Srishti Rachna




          सृष्टि रचना

          पवित्र सूक्ष्म वेद के आधार पर 

पुण्यात्माओ प्रथम बार सृष्टि रचना को पढ़ेंगे तो ऐसा लगेगा जैसे दंतकथा हो परंतु सर्व पवित्र सद्ग्रंथों के प्रमाणों को पढ़कर दांतो तले उंगली दबाएंगे और कहगे कि यह अमृत ज्ञान कहां छुपा था ? कृपया धैर्य के साथ पढ़ते रहिए और इस अमृत ज्ञान को सुरक्षित रखिए आपकी 101 पीढी तक काम आएगा। पुण्यात्माओ सतनारायण ,अविनाशी प्रभु ,सत्य पुरुष ,कबीर साहेब द्वारा रचित सृष्टि रचना का वास्तविक ज्ञान पढे :-


1 पूर्णब्रह्म‌ :-इस सृष्टि रचना में सतपुरुष सतलोक का स्वामी (प्रभु ) अलख पुरुष-अलख लोक का स्वा से मी(प्रभु), अगम पुरुष एवं अगमलोक का स्वामी ,(प्रभु) तथा अनामी पुरुष अनामी लोक , अकह लोक का स्वामी प्रभु तो एक ही पूर्णब्रह्म है जो वास्तव में अविनाशी प्रभु है और भिन्न -भिन्न रूप धारण करके अपने चारों लोकों में रहता है जिसके अंतर्गत असंख्य ब्रह्मांड आते हैं।

2.परब्रह्म :- यह केवल सात संख ब्रह्मांड का स्वामी (प्रभु )है यह अक्षर पुरुष भी कहलाता है परंतु यह तथा इसके ब्रह्मांड भी वास्तव में अविनाशी नहीं है। इनका भी जन्म मरण होता है।

3.ब्रह्म:- यह केवल 21 ब्रह्मांड का स्वामी (प्रभु )है इसे अक्षर पुरुष, ज्योति निरंजन, काल ,कैल आदि उपमात्मक नामों से जाना जाता है यह तथा इसके सभी ब्रह्माण्ड भी नाशवान है।



_____ उपरोक्त तीनों पुरुषों( प्रभुओं) का प्रमाण पवित्र श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 16 ,17 में भी है____

4.ब्रह्मा:- ब्रह्मा इसी ब्रह्म का जेष्ठ पुत्र है विष्णु मध्य वाला पुत्र है तथा शिव अंतिम तीसरा पुत्र है ये तीनों ब्रह्म के पुत्र केवल एक-एक ब्रहमांड में एक विभाग के स्वामी प्रभु है तथा नाशवान है जानने के लिए ब्लॉग  को पूरा पढ़ें

(कविर्देव) कबीर परमेश्वर ने सूक्ष्म वेद अर्थात कबीर वाणीयों में अपने द्वारा रचित सृष्टि का ज्ञान स्वयं ही बताया है जो निम्नलिखित है।

सर्वप्रथम केवल एक स्थान अनामी लोक था पूर्ण परमात्मा उस अनामी लोक में अकेला रहता था उस परमात्मा का वास्तविक नाम (कविर्देव) कबीर परमेश्वर है। हम सभी आत्माऐ उस पूर्ण धनी के शरीर में समाई हुई थी । कबीर देव का उपमात्मक ( पदवी )का नाम अनामी पुरुष है,( पुरुष का अर्थ प्रभु होता है) प्रभु ने मनुष्य को अपने ही स्वरूप में बनाया है इसलिए मानव का नाम भी पुरुष पड़ा अनामी पुरुष के एक रोम कूप का प्रकाश करोडों सूर्यो की रोशनी से भी अधिक है विशेष बात यह है कि पूर्ण परमात्मा के शब्द में शक्ति होती है।

○जिस प्रकार किसी देश का प्रधानमंत्री अपने पास अनेक विभाग रख लेता है तथा जब वह किसी विभाग के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करता है तो वह उसी विभाग का नाम रख देता है उस समय वह प्रधानमंत्री के साइन नहीं करता ठीक उसी प्रकार कबीर परमेश्वर (कविर्देव ) के शरीर की रोशनी में अंतर भिन्न-भिन्न लोको में अलग-अलग है ।

ठीक उसी प्रकार पूर्ण परमात्मा कबीर देव कबीर परमेश्वर ने नीचे के तीनऔर लोको की (अगम लोक ,अलख लोक व सतलोक )की रचना शब्द से की यही पूर्ण परमात्मा ,(कविर्देव) कबीर परमेश्वर ही अगमलोक में प्रकट हुआ तथा कबीर परमेश्वर अगमलोक का भी स्वामी है और वहां इनका उप आत्मक पदवी का नाम अगमपुरुष है इसी अगम (प्रभु )का मानव सदृश्य शरीर बहुत तेजोमय है जिसके एक रूम कूप की रोशनी खरब सूर्य की रोशनी से भी अधिक है।

 यह पूर्ण परमात्मा कबीर देव कबीर परमेश्वर अलख लोक में प्रकट हुआ तथा स्वयं ही अलख लोक का भी स्वामी है तथा उपात्मक (पदवी) का नाम अलख पुरुष भी इसी परमेश्वर का है ।प्रभु का मानव सदृश्य तेजोमय स्वयं प्रकाशित है शरीर के एक रूप कूप की रोशनीअरबो सूर्य के प्रकाश से भी ज्यादा है।

यही यही पूर्ण प्रभु सतलोक में प्रकट हुआ तथा सतलोक का भी अधिपति यही है । इसी का उपमात्मक( पदवी )का नाम सतपुरुष अविनाशी प्रभु है इसी का नाम (अकाल मूर्ति , शब्द स्वरूपीं राम, पूर्णब्रह्म,व परम अक्षर ब्रह्म) है इसी सतपूरुष (कविर्देव )व कबीर प्रभु का मानव सदृश्य शरीर तेजोमय है जिसके एक रोम कूप का प्रकाश करोडों सूर्य तथा इतने ही चंद्रमा से भी अधिक है।

 इस प्रकार (कविर्देव) कबीर परमात्मा , सत्पुरुष रूप में प्रकट होकर सतलोक में विराजमान हुए और प्रथम सतलोक में अन्य रचना की एक शब्द वचन से 16 द्विपो की रचना की ।फिर 16 शब्दों से 16 पुत्रों की उत्पत्ति की और एक मानसरोवर की रचना की जिसमें अमृत भरा है 16 पुत्रों के नाम इस प्रकार है 

1कूर्म 2 ज्ञानी 3 विवेक 4 तेज 5 सहज 6 संतोष 7 सुरति 8 आनंद 9 क्षमा 10 निष्काम 11 जलरंगी 12 अचिंत 13 प्रेम 14 दयाल 15 धैर्य 16 योग संतायन अर्थात योगजीत है तत्पश्चात्त सतपुरुष कविर्देव ने अपने पुत्र अचिंत को सतलोक की अन्य रचना का भार सौपा और शक्ति प्रदान की। अचिंत ने अक्षर पुरुष की शब्द से उत्पत्ति की और कहा कि मेरी मदद करना। अक्षर पुरुष स्नान करने मानसरोवर पर गया और उसे आनंद आया और सो गया। लंबे समय तक बाहर नहीं आया तब अचिंत की प्रार्थना पर अक्षर पुरुष को नींद से जगाने के लिए कविर्देव ने उसी मानसरोवर से कुछ अमृत जल लेकर एक अंडा बनाया उस अंडे में एक आत्मा प्रवेश की तथा अंडे को मानसरोवर के अमृत जल में छोड़ा अंडे की गड़गड़ाहट से अक्षर पुरुष की निद्रा भंग हुई उसने अंडे को क्रोध से देखा जिस कारण से अंडे के दो भाग हो गए उसमें से जोत निरंजन (क्षर पुरुष) निकला जो आगे चलकर काल कहलाया इसका वास्तविक नाम कैल है। 

तब सत्पुरुष कविर्देव ने आकाशवाणी की आप दोनों बाहर आ जाओ। और अचिंत के द्वीप में रहो आज्ञा पाकर अक्षर पुरुष, क्षर पुरुष( काल निरंजन) दोनों अचिंत के दीप में रहने लगे ।बच्चों की नालायकी उन्हीं को दिखाई । फिर पूर्ण परमात्मा ने अपनी शब्द शक्ति से एक राजेश्वरी (राष्ट्री) शक्ति मानव सदृश्य शरीर में उत्पन्न की। और सभी ब्रह्मणों को स्थापित किया। इसी को पराशक्ति नंदिनी दुर्गा भी कहते हैं पूर्णब्रह्म ने आत्माओं को अपने ही शरीर से अपनी वचन शक्ति से मानव सदृश्य ही उत्पन्न किया। प्रत्येक हंस आत्मा का परमात्मा जैसा ही शरीर है जिसका तेज 16 सूर्य के प्रकाश के समान है। पूर्ण परमात्मा के शरीर के एक रोम कूप का प्रकाश करोड़ों सूर्य से भी ज्यादा है बहुत समय उपरांत क्षर पुरुष (ज्योति निरंजन)ने सोचा कि हम तीनों (अचिंत ,अक्षर पुरुष क्षर पुरुष) एक ही द्वीप में रह रहे हैं तथा अन्य अलग अलग द्वीपों में रह रहे हैं। मैं भी साधना करके अलग द्वीप प्राप्त करूंगा उसने ऐसा विचार करके एक पैर पर खड़ा होकर 70 युग तक तप किया।

   आत्माएं काल के जाल में कैसे फंसी?

विशेष:-जब ब्रह्म(ज्योति निरंजन) तप कर रहा था हम सभी आत्माएं जो आज ज्योति निरंजन के 21 ब्रह्मांड में रहते हैं। इसकी साधना को देखकर आसक्त हो गए तथा अंतरात्मा से इसे चाहने लगे। अपने सुख कारी प्रभु सतपुरुष से विमुख हो गए जिस कारण से अपने पतिव्रता पद से गिर गए। और पूर्ण परमातमा के बार-बार सावधान करने पर भी हमारी आसक्ति क्षर पुरुष से नहीं हटी।

पूर्णब्रह्म कबीर प्रभु ने क्षर पुरुष से पूछा बोलो क्या चाहते हो उसने कहा पिताजी यह स्थान मेरे लिए कम है मुझे अलग से द्वीप प्रदान करने की कृपा करें हक्का कबीर सतकबीर ने उसे 21 ब्रह्मांड प्रदान कर दिए। कुछ समय उपरांत ज्योति (निरंजन काल) ने सोचा कि इसमें कुछ रचना करनी चाहिए खाली ब्रह्मांड (प्लॉट )किस काम के हैं यह विचार करके उसने सत्तर (70) युग तक फिर से तप करके पूर्ण परमात्मा कबीर प्रभु से रचना सामग्री की याचना की। सतपुरुष ने उसे तीन,(3) गुण और पांच(5 )तत्व प्रदान कर दिए जिससे ब्रह्म ज्योति निरंजन ने अपने ब्रह्मांड में कुछ रचना की 

फिर सोचा कि इसमें जीव भी होने चाहिए अकेले का दिल नहीं लगता। यह विचार कर 64 युग तक फिर तप किया। पूर्ण परमात्मा कबीर देव के पूछने पर बताया कि मुझे कुछ आत्मा दे दो, मेरा अकेले का दिल नहीं लग रहा तब सतपुरुष कबीरग्नि (कबीर परमेश्वर) ने‌ ब्रह्म से कहा कि तप के प्रतिफल में मैं तुझे और ब्रह्मांड दे सकता हूं। परंतु मेरी आत्माओं को किसी भी जप तप व साधना के फल स्वरुप में नहीं दे सकता। हां यदि कोई स्वेच्छा से तेरे साथ जाना चाहे तो वह जा सकता है।

युवा कबीर (समर्थ कबीर )अविनाशी प्रभु के वचन सुनकर ज्योति निरंजन हमारे पास आया। हम सभी हंस आत्माएं जो पहले से ही उस पर आसक्त थे उसे चारों तरफ से घेर कर खड़े हो गए। ज्योति निरंजन ने कहा मैंने पिताजी से अलग 21 ब्रह्मांड प्राप्त किए हैं। वहां नाना प्रकार के रमणीय स्थल बनाए हैं। क्या आप मेरे साथ चलोगे हम सभी हंसों ने जो आज 21ब्रम्हाण्डोमें परेशान हैं। कहा कि हम तैयार हैं। यदि पिता जी आज्ञा दे तब क्षर पुरुष महान सतकबीर प्रभु के पास गया तथा सब वार्ता कहीं कबीर परमेश्वर ने कहा मेरे सामने स्वीकृति देने वालों को आज्ञा दूंगा।

"पवित्र अथर्ववेद में सृष्टी रचना का प्रमाण"

पवित्र ऋग्वेद में सृष्टी रचना का प्रमाण

"पवित्र श्रीमद्देवी महापुराण में सृष्टी रचना का प्रमाण'

"पवित्र शिव महापुराण में सृष्टी रचना का प्रमाण'

"पवित्र श्रीमद्भगवत गीता जी में सृष्टी रचना का प्रमाण"

"पवित्र बाईबल तथा पवित्र कुरान शरीफ में सृष्टी रचना का प्रमाण"

 क्षर पुरुष तथा सतपुरुष कबीर दोनों हम सभी हंस आत्माओं के पास आए। कविर्देव ने कहा कि जो हंस आत्मा ब्रह्म के साथ जाना चाहती हैं। हाथ ऊपर उठाए अपने पिता के सामने किसी की हिम्मत नहीं हुई किसी ने हाथ नही उठाया। तत्पश्चात एक आत्मा में साहस किया कहा कि पिताजी मैं जाना चाहता हूं फिर तो उसके देखा देखी जो आजकल काल ब्रह्म के 21 ब्रह्मांड में फंसी हैं हम सभी आत्माओं ने स्वीकृति दे दी परमेश्वर कबीर जी ने क्षर पुरुष  से कहा कि आप अपने स्थान पर जाओ । जिन्होंने तेरे साथ जाने की स्वीकृति दी है। मैं आपके पास भेज दूंगा । ज्योति निरंजन काल अपने 21 ब्रह्मांडो में चला गया। उस समय तक यह सभी 21 ब्रह्मांड सतलोक में ही स्थित थे।

   तत्पश्चात पूर्ण परमात्मा ने सर्वप्रथम स्वीकृति देने वाले हंस को एक लड़की का रूप दिया परंतु स्त्री इंद्री नहीं रची। तथा सर्व आत्माओं को जिन्होंने ज्योति निरंजन ब्रह्म के साथ जाने की सहमति दी थी उस लड़की के शरीर में प्रवेश कर दिया। उसका नाम आस्ट्रा (आदिमाया, प्रकृति ,देवी ,दुर्गा,) पड़ा।

तथा सत्पुरुष ने कहा कि पुत्री मैंने तेरे को शब्द शक्ति प्रदान कर दी जितने जीव ब्रह्म कहें आप उत्पन्न कर देना। पूर्णब्रह्म कविर्देव अविनाशी प्रभु ने अपने पुत्र सहज दास के द्वारा प्रकृति को क्षर पुरुष के पास भिजवा दिया। सहज दास जी ने ज्योति निरंजन को बताया कि पिताजी ने इस बहन के शरीर में सर्व आत्माओं का प्रवेश कर दिया। जिन्होंने आप के साथ जाने की सहमति व्यक्त की थी तथा इसको पिताजी ने वचन शक्ति प्रधान की है। आप जितने चाहोगे प्रकृति अपने शब्द से जीव उत्पन्न कर देगी यह कहकर सहज दास वापिस अपने द्वीप में आ गया 

युवा होने के कारण लड़की का रंग रूप निकला हुआ था। जिसे देखकर ब्रह्म के अंदर विषय वासना उत्पन्न हो गई। तथा प्रकृति देवी के साथ अभद्र गतिविधि प्रारंभ कर दी तब दुर्गा ने कहा कि ज्योति निरंजन मेरे पास पिताजी की प्रधान की हुई शब्द शक्ति है ।आप जितने प्राणी कहोगे मैं वचन से उत्पन्न कर दूंगी। आप मैथुन परंपरा शुरु मत करो आप भी उसी पिता के शब्द से अंडे से उत्पन्न हुए हो तथा मैं भी उसी परम पिता वचन से ही बाद में उत्पन्न हुई हूं। आप मेरे बड़े भाई हो बहन भाई का यह योग महापाप का कारण बनेगा। 

परंतु ज्योति निरंजन ने प्रकृति देवी की एक भी प्रार्थना नहीं सुनी तथा अपनी शब्द शक्ति द्वारा नाखूनों से स्त्री इंद्री (भंग) प्रकृति (दुर्गा)को लगा दी तथा बलात्कार करने की ठानी उसने अपनी इज्जत रक्षा के लिए कोई और चारा न देख सूक्ष्म रूप बनाया तथा ज्योति निरंजन के मुख द्वारा पेट में प्रवेश करके पूर्णब्रह्म कविर्देव अविनाशी से अपनी रक्षा के लिए याचना की उसी समय कबीर साहेब अपने पुत्र योग संतायन अर्थात जोग जीत का रूप बनाकर वहां आये और कन्या को ब्रह्म के पेट से बाहर निकाला ।

और कहा कि ज्योति निरंजन आज से तेरा नाम काल होगा और तेरे जन्म मृत्यु होते रहेंगे इसलिए तेरा नाम क्षर पुरुष होगा 1 लाख मानव शरीर प्राणियों को खाया करेगा और सवा लाख पैदा किया करेगा आप दोनों को 21 ब्रह्मांडो सहित सतलोक से निष्कासित किया जाता है इतना कहते ही 21 ब्रह्मांड विमान की तरह चल पड़े शहद दास के द्वीप के पास से होते हुए सतलोक से 16 शंख कोष की दूरी पर जा कर रुके।

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