गीता अनुसार व्रत करना व्यर्थ
व्रत करना व्यर्थ है
- पति शराबी घर पर नित ही, करत बहुत लड़ईयों ।
पत्नी षोडष शुक्र व्रत करत है, देहि नित तुडईयौ ।।
विचार :- नशजो साधना कर रहे हो, इससे लाभ है या हानि।
उस बेटी से पूछा कि "सोलह शुक्रवार के व्रतों से ज्ञानहीन गुरूओं ने क्या लाभ बताया है?" उस लड़की ने बताया कि एक स्त्री का पति रोजगार के लिए दूर देश में चला गया। वह वर्षों तक नहीं आया। उस स्त्री को चिंता सताने लगी। एक दिन उसको देवी संतोषी माता दिखाई दी और बोली कि मेरे सोलह शुक्रवार के व्रत लगातार कर दे। तेरा पति घर आ जाएगा ऐसा ही हुआ ।
विचार करो बेटी! आपका पति तो तेरे पास ही रहता है। प्रतिदिन लड़ाई करता है। आपकी देही तोड़ता है यानि मार-पीट करता है। आप भी इस व्रत को किसलिए कर रही हो? आपने तो ऐसा व्रता करना चाहिए था कि वह कई दिन घर ना आए और मार ना पड़े। आप तो अपनी आफत लाने का व्रत कर रही थी।
व्रत रखना गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में मना किया है। कहा है कि जो बिल्कुल अन्न नहीं खाते यानि व्रत करते हैं, उनका योग यानि भक्ति कर्म कभी सफल नहीं होता। उसने बताया कि मेरी सहेली एक गुरू के पास जाती है। उसने मुझे बताया था। मैं भी व्रत करने लगी। मुझे तो आज पता चला कि मैं तो व्यर्थ भक्ति कर रही थी।
सूक्ष्मवेद में कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि :-
गुरूवाँ गाम बिगाड़े संतो. गुरूवाँ गाम बिगाड़े।
ऐसे कर्म जीव कै ला दिए, बहुर झड़ नहीं झाड़े।।
परमेश्वर कबीर ने समझाया है कि तत्वज्ञानहीन गुरूओं ने गाँव केगाँव को शास्त्रविरूद्ध साधना पर लगाकर उनका जीवन नाश कर रखा है। भोली जनता को शास्त्र विरुद्ध साधना पर इतना दृड कर दिया है कि वे शास्त्रों में प्रमाण देखकर भी उस व्यर्थ पूजा को त्यागना नहीं चाहते।
पाखण्ड सत नाम लौ लावै, सोई भव सागर से तरियाँ।
कहें कबीर मिले गुरू पूरा, स्यों परिवार उधरियों ।।
परमात्मा कबीर जी ने स्पष्ट किया है कि उपरोक्त तथा अन्य शास्त्रविरूद्ध पाखण्ड पूजा को त्यागकर पूर्ण सतगुरु से सच्चे नाम का जाप प्राप्त करके श्रद्धा से भक्ति करके भक्तजन पार हो जाते हैं। उनके परिवार के सर्व सदस्य भी भक्ति करके कल्याण को प्राप्त हो जाते हैं।
"गीता में व्रत के विषय मेंं--:
प्रश्न :- क्या एकादशी, कष्ण अष्टमी या अन्य व्रत भी शास्त्रों में वर्जित हैं?
उत्तर :- गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में बताया है कि बिल्कुल न खाने वाले यानि व्रत रखने वाले का योग यानि परमात्मा से मिलने का उद्देश्य पूरा नहीं होता। > गीता अध्याय 6 श्लोक 16 :- हे अर्जुन यह योग (यानि परमात्मा प्राप्ति के लिए की गई साधना) न तो बहुत खाने वाले का और न बिल्कुल न खाने वाले का तथा न बहुत शयन करने वाले का और न सदा जागने वाले का ही सिद्ध होता है। इसलिए व्रत रखना शास्त्रविरूद्ध होने से व्यर्थ सिद्ध हुआ।
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