तीर्थ तथा धाम क्या हैं?
प्रश्न :- तीर्थों, धामों पर श्रद्धा से दर्शनार्थ तथा पूजा करने से हिन्दू गुरुजन बहुत पुण्य बताते हैं। यह साधना लाभदायक है या नहीं? कृप्या शास्त्रों के अनुसार बताएँ।
उत्तर :- तीर्थ या धाम वे पवित्र स्थान हैं जहाँ पर या तो किसी महापुरूष का जन्म हुआ था या निर्वाण (परलोक वास) हुआ था या किसी साधक ने साधना की थी या कोई अन्य ऋषि या देवी देव की कथा से जुड़ी यादगारें हैं।
विचार करें :- पवित्र तीर्थ तथा पवित्रताकि धाम तो यादगारें हैं कि यहाँ पर ऐसी घटना घटी थी उनका प्रमाण बना रहे।
उदाहरण :- जैसे अमरनाथ धाम है। उसकी कथा का सर्व हिन्दुओं को ज्ञान है कि उस एकान्त स्थान पर श्री शिव जी ने अपनी पत्नी पार्वती जी को नाम दीक्षा दी थी जिसका देवी जी जाप कर रही हैं। जिस मन्त्र की साधना के प्रभाव से उनको अमरत्व प्राप्त हुआ है।
वर्तमान में वह एक यादगार के अतिरिक्त कुछ नहीं है। वह प्रमाण है कि यहाँ पर वास्तव में देवी जी को श्री शिव भगवान ने अमर होने का मन्त्र दिया था। यदि किसी को विश्वास नहीं हो रहा हो तो वहाँ जाकर देखकर भ्रम मिटा सकता है। परन्तु कोई यह कहे कि उस स्थान के दर्शन करने तथा वहाँ दान-धर्म करने से मुक्ति मिलेगी या भक्ति लाभ होगा, ऐसा कुछ नहीं है। रही बात दान धर्म करने की, आप कहीं पर भी धर्म का कार्य करो, आपको उसका फल मिलेगा क्योंकि वह आपको शुभ कर्मों में परमात्मा उसी समय लिख देता है। जैसे कोई व्यक्ति एकान्त स्थान पर कोई हत्या या अन्य अपराध करता है तो उसके अशुभ कर्मों में लिखा जाता है, उसका फल अवश्य मिलता है।
इसलिए पुण्य का कार्य कहीं पर करो। उसका फल तो मिलेगा। पुण्य करने के लिए दूर स्थान तीर्थ पर जाना बुद्धिमता नहीं। यही प्रश्न एक समय जिंदा साधु के रूप में मथुरा में प्रकट परमेश्वर कबीर जी से एक तीर्थ यात्री श्री धर्मदास सेठ द्वारा किया गया था जो मथुरा तीर्थ पर स्नानार्थ तथा दान-धर्म करने के लिए अपने गुरू रूपदास वैष्णव के बताए भक्ति कर्म को करने 'बांधवगढ़' नामक नगर (मध्य प्रदेश) से आया था। परमात्मा ने उसे समझाया था कि यहाँ मथुरा-वृन्दावन में वर्तमान में श्री कृष्ण जी नहीं हैं और विचार कर कि जब श्री कष्ण जी ही इस स्थान को त्यागकर हजारों कि.मी. दूर द्वारिका में सपरिवार तथा सर्व यादवों को लेकर चले गए थे तो इस स्थान का महत्व ही क्या रह गया? यह तो एक यादगार है कि कभी श्री कष्ण जी ने कुछ समय यहाँ बिताया था। कंस, केशी तथा चाणूर अन्यायियों को मारा था। परमात्मा ने कहा कि हे धर्मदास! आप गीता शास्त्र को साथ लिए हो, इसका नित्य पाठ भी करते हो। इसमें कहीं वर्णन है कि तीर्थ जाया कर अर्जुन, बेड़ा पार हो जाएगा। धर्मदास जी ने कहा, नहीं प्रभु! गीता में कहीं पर भी प्रभु का आदेश ऐसा नहीं लिखा है।
परमेश्वर जी ने कहा कि गीता अध्याय 16 श्लोक 23 को पढ़। उसके अनुसार तो यह तीर्थ यात्रा शास्त्र में वर्णित न होने से यदि आपके तत्वज्ञानहीन गुरूओं की माने कि तीर्थ पर जाने से पुण्य लगता व्यर्थ साधना है।
फिर पुण्य तो एक लगा और पाप लगे करोड़ों-अरबों-खरबों। यह सुनकर सेठ धर्मदास अंध श्रद्धा भक्ति करने वाला काँप गया और उसका गला सूख गया। बोला कि हे जिंदा! इतने पाप कैसे लगे? कृपा समझाईये।
परमेश्वर कबीर जी (जिंदा वेशधारी प्रभु) ने समाधान इस प्रकार किया :- > कहा कि हे धर्मदास! आप बांधवगढ़ से मथुरा नगरी में वंदावन में आए हो। बांधवगढ़ यहाँ से लगभग दो सौ पचास कोस (लगभग सात सौ पचास कि.मी.) है। वहाँ से यहाँ तक पैदल चलकर आने से आपके द्वारा अनेकों जीव हिंसा हो गई है । आपने इस मथुरा तीर्थ के जल में स्नान किया करोड़ों सूक्ष्म जीव भी तीर्थ के जल में थे जो आपके स्नान करने से रगड़ लगने से मारे गए तथा आप जी ने भोजन बनाने से पहले जो चौंका गारा तथा गाय के गोबर से लीपा, उसमें उसी जल का प्रयोग किया तथा पृथ्वी पर उपस्थित जीव चौंका लीपते समय करोड़ों जीव मारे गए। यह सब पाप आपको लगे। आप बताओ कि आप लाभ का सौदा कर रहे हो या घाटे का?
धर्मदास जी के मुख से कोई बात नहीं निकली, उत्तर नहीं आया क्योंकि वह भय के कारण स्तब्ध हो गया था। कुछ क्षण के पश्चात् परमात्मा जिंदा वेशधारी के चरणों में गिर गया तथा यथार्थ शास्त्रोक्त भक्ति बताने की याचना की। परमात्मा कबीर जी ने शास्त्रों में वर्णित साधना करने को बताई तथा अन्य सब आन-उपासना यानि पाखण्ड पूजा त्यागने को कहा।
धर्मदास जी विवेकी थे। देर सारे प्रश्न-उत्तर करके समझ गए। अपने कल्याण का मार्ग जान लिया ओर अपनी पत्नी को समझाकर सतगुरू कबीर जी से दीक्षा दिलाकर अपना तथा अपने परिवार को शास्त्रोक्त साधना पर लगाया भक्ति का पूर्ण लाभ प्राप्त किया। .धर्मदास जी ने अनेकों शंकाओं का समाधान जाना। उनमें से एक यह भी थी कि :-
"वैष्णव देवी, नैना देवी, ज्वाला देवी तथा अन्नपूर्णा देवी के मंदिरो की स्थापना"
प्रश्न :- वैष्णो देवी, नैना देवी, ज्वाला देवी तथा अन्नपूर्णा देवी आदि पवित्र स्थानों पर अनेकों हिन्दू जाते हैं। क्या वहाँ जाने से भी भक्ति लाभ नहीं है? उत्तर (कबीर जी जिंदा महात्मा का) :- हे धर्मदास! अभी बताया था कि तीर्थों-धामों पर जाने से क्या लाभ-हानि होती है। फिर भी सुन। पूरा हिन्दू समाज जानता है कि ये पवित्र धर्म स्थान कैसे बने। आप अनजान मत बनो। जिस समय दक्ष पुत्री सती जी अपने पति श्री शिव जी से रूठकर पिता दक्ष जी के पास अपने घर आई। राजा दक्ष ने सती जी का अनादर किया। राजा दक्ष उस समय यज्ञ कर रहे थे। बहुत बड़े हवन कुण्ड में हवन चल रहा था। सती जी अपने पिता की बातों का दुःख मानकर हवन कुण्ड की अग्नि में गिरकर जल मरी। भगवान शिव को पता चला तो उन्होंने उसके बचे हुए नर कंकाल को उठाया तथा पत्नी के वियोग में उसे उठाए फिरते रहे। पत्नी के मोहवश महादुःखी थे। आपके पुराण में लिखा है कि दस हजार वर्षों तक सती पार्वती जी के कंकाल को लिए घूमते रहे। फिर श्री विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र से उस कंकाल ( अस्थि पिंजर) के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। उस समय श्री शिव जी का मोह भंग हुआ। सती जी के शरीर के भाग कहीं-कहीं गिरे।
- वैष्णों देवी मंदिर की स्थापना :
जहाँ पर देवी जी का धड़ वाला भाग गिरा। वहाँ पर यादगार बनाए रखने के लिए श्रद्धालुओं ने धड़ को श्रद्धा के साथ पृथ्वी में दफनाकर उसके ऊपर एक छोटी-सी मंदिरनुमा यादगार बना दी। बाद में समय अनुसार इसका विस्तार होता रहा। इस यादगार को देखने और वहाँ पर पूजा करने जाने से कोई पुण्य नहीं, अपितु पाप लगता है जो आने-जाने में जीव हिंसा होती है।
नैना देवी के मंदिर की स्थापना :-
जिस स्थान पर सती पार्वती जी की आँखों वाला शरीर का भाग गिरा, वहाँ पर भी उसी प्रकार जमीन मे दफनाकर मंदिर बना दिया ताकि घटना का प्रमाण रहे। कोई पुराण कथा को गलत न बताए
ज्वाला जी की स्थापना :-
जिस स्थान पर कांगड़ा जिले (हिमाचल प्रदेश ) में देवी जी की अधजली जीभ वाला भाग गिरा, उसको श्रद्धा से उस स्थान पर पथ्वी में उस जीभ को श्रद्धा से दबाकर यादगार रूप में छोटा मंदिर बना दिया। बाद में बहुत बड़ा मंदिर बनाया गया। वह ज्वाला देवी जी का मंदिर है।
अन्नपूर्णा देवी मंदिर की स्थापना :-
जिस स्थान पर सती पार्वती जी के शरीर का नाभि वाला भाग गिरा। उसको श्रद्धा से पृथ्वी में दबाकर उसके ऊपर यादगार रूप में छोटा-सा मंदिर बना दिया था। बाद में उसका बहुत विस्तार किया गया और शास्त्र विरूद्ध साधना शुरू कर दी गई है। यह सब प्रमाण रूप हैं।
विचार करो :- ऐसे स्थानों पर भक्ति व पूजा तथा पुण्य प्राप्त करने के लिए जाना शास्त्रविरूद्ध होने से हानिकारक है। इसलिए यह व्यर्थ है।
यदि किसी को पुराणों में लिखी घटना पर विश्वास न हो तो देखने जाओ तो जाओ, लेकिन पुण्य के स्थान पर जीव हिंसा का पाप ही प्राप्त होगा जो आने-जाने के दौरान पैरों या गाड़ी-घोड़े के नीचे दबकर मरेंगे। इसी प्रकार अन्य दर्शनीय स्थलों (आदि बद्रीनाथ, केदारनाथ, जगन्नाथपुरी, द्वारकापुरी आदि-आदि) पर किसी आध्यात्मिक लाभ के लिए जाना अंध श्रद्धा भक्ति के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।
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